एक नव विकसित नैनोकम्पोजिट लेप (कोटिंग) किसी जैविक परत (बायोफिल्म) के निर्माण को रोक सकने के साथ ही इसमें संलग्न जीवाणुओं को भी समाप्त कर सकती है जिससे बढ़ते शल्य–क्रिया (सर्जिकल ऑपरेशन्स) के बाद होने वाले ऐसे संक्रमणों से निपटने में सहायता मिलती है, जो आजकल जीवाणुओं में एंटीबायोटिक प्रतिरोध के कारण होने वाली एक सामान्य सी स्थिति है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन अनुसार शल्य–क्रिया के बाद होने वाले ये ये शल्य क्रिया के स्थानिक संक्रमण (एसएसआईएस) निम्न और मध्यम आय वाले देशों में 11 प्रतिशत रोगियों को प्रभावित करते हैं और शरीर के शल्य-क्रिया वाले वाले स्थान के भीतर नर्म ऊतक में एंटीबायोटिक दवाओं के लिए अत्यधिक प्रतिरोधी जीवाणुओं के समूह के ये जैविक परतों रूप में विकसित होने के कारण उत्पन्न होते हैं। ऐसा बायोफिल्म मैट्रिक्स, जो रोगी के शरीर में पहले से विद्यमान संक्रमण से आ सकता है अथवा शल्य क्रिया में प्रयुक्त उपकरणों, घाव की ड्रेसिंग या पट्टी/सर्जिकल टांकों जैसे संभावित वाहक के माध्यम से अस्पताल के वातावरण से स्थानांतरित हो सकता है- तब शल्य क्रिया के दौरान दी गई एंटीबायोटिक दवाओं के विरुद्ध उनकी पहुँच और प्रभाव को धीमा करके जीवाणुओं के लिए एक भौतिक ढाल के रूप में कार्य करता है।
इसलिए इन सामग्रियों की सतह पर एक ऐसी जीवाणुरोधी कोटिंग होना आवश्यक है जो शल्य क्रिया के स्थानिक संक्रमण (एसएसआई) के संभावित स्रोतों के रूप में कार्य कर सके। जीवाणु संक्रमण को रोकने के लिए पारंपरिक रूप से नैनोसिल्वर, नैनोकॉपर, ट्राईक्लोसन और क्लोरहेक्सिडिन जैसी जीवनाशक युक्त जीवाणुरोधी कोटिंग्स का उपयोग किया गया है। यद्यपि ट्राईक्लोसन और क्लोरहेक्सिडिन जीवाणुओं के एक व्यापक स्पेक्ट्रम के प्रति जीवाणुरोधी प्रभाव प्रदर्शित करते हैं तथापि ये और ऐसे ही अन्य जीवनाशक कोशिकीय विषाक्तता (साइटोटोक्सिसिटी) उत्पन्न करने के लिए जाने जाते हैं। परिणामतः जीवाणुरोधी गुणों के साथ वैकल्पिक गैर-कोशिकविशीय सामग्री विकसित करने पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है।
विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के एक स्वायत्त संस्थान पाउडर धातुकर्म और नई सामग्री के लिए अंतर्राष्ट्रीय उन्नत अनुसंधान केंद्र (एआरसीआई) के शोधकर्ताओं ने जल विकर्षक और बायोसाइडल गुणों (संयोजी दृष्टिकोण) के संयोजन से एक ऐसी नैनोकम्पोजिट कोटिंग (जो एआरसीआई में एटीएल के रूप में नामित है) को विकसित किया है, जो जल विरोधी (हाइड्रोफोबिक) और जीवनाशी (बायोसाइडल) दोनों ही गुणों को प्रदर्शित करता है। विकसित कोटिंग न केवल बैक्टीरिया और पानी के आसंजन को प्रतिबंधित करके बायोफिल्म निर्माण को रोकती है बल्कि इससे संलग्न जीवाणुओं (बैक्टीरिया) को भी मारती है।
स्टेनलेस स्टील से निर्मित 420 कूपन ग्रेड के शल्यक्रिया उपकरणों के अलावा रेशम, नायलॉन और पॉलीग्लैक्टिन 910 (विक्राइल) से बने विभिन्न सर्जिकल टांकों पर एटीएल को एकत्र किया गया था और उनका अमेरिकन टाइप कल्चर कलेक्शन (एटीसीसी) के विरुद्ध बायोफिल्म निषेध और प्रमाणित बायोफिल्म के नैदानिक पृथक अंशों (क्लिनिकल आइसोलेट स्ट्रेन) के लिए परीक्षण किया गया था। ट्रान्सलेशनल स्वास्थ्य विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संस्थान (टीएचएसटीआई) फरीदाबाद और एलवी प्रसाद नेत्र इंस्टीट्यूट (एलवीपीईआई), हैदराबाद में क्रमशः स्यूडोमोनास एरुगिनोसा, एसिनेटोबैक्टर बाउमानी, स्टैफिलोकोकस ऑरियस और एस्चेरिचिया कोलाई जैसे बैक्टीरिया विकसित किए जाते हैं।
व्यावसायिक रूप से उपलब्ध ट्राईक्लोसन-लेपित जीवाणुरोधी टांके की तुलना में एटीएल-लेपित विक्राइल टांके ने उच्च प्रतिशत जैविक परत के निषेध का प्रदर्शन किया। सूत्रीकरण की कोशिकीय विषाक्तता (साइटोटोक्सिसिटी) का लेपित सतह पर मूल्यांकन किया गया था और तब यह पाया गया कि एटीएल कोटिंग्स नॉनसाइटोटॉक्सिक हैं। वर्तमान अध्ययन में विकसित किए गए कोटिंग्स का उपयोग विशेष रूप से सर्जिकल टांके/सर्जिकल उपकरणों पर स्वास्थ्य संबंधी अनुप्रयोगों के लिए बहु औषधि प्रतिरोधी (मल्टीड्रग-रेजिस्टेंट) बैक्टीरिया के उद्भव को रोकने के लिए व्यावसायिक रूप से उपलब्ध एंटीबैक्टीरियल कोटिंग्स के लिए गैर-कोशिकाविषीय विकल्प के रूप में किया जा सकता है।
मिशन एएमआर के अंतर्गत उपरोक्त शोध कार्य को जैव प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा वित्त पोषित बहु-संस्थागत परियोजना के रूप में सम्पन्न किया गया था जिसमे एआरसीआई, हैदराबाद इसके प्रधान अन्वेषक और परियोजना समन्वयक थे और ट्रान्सलेशनल स्वास्थ्य विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संस्थान (टीएचएसटीआई) फरीदाबाद एवं एलवीपीईआई, हैदराबाद सहयोगी संस्थान थे। आर सुबाश्री, रामय पात्रा, के.आर.सी. सोमा राजू, सुस्मिता चौधरी, प्रशांत गर्ग, बी. भास्कर, देवरूपा सरकार ने इसके लिए “बायोफिल्म इनहिबिटिंग सोल-जेल कंपोजीशन फॉर कोटिंग ऑन सबस्ट्रेट्स एंड प्रोसेस ऑफ द सेम” शीर्षक से हेतु भारतीय पेटेंट हेतु आवेदन किया है।