माँ दुर्गा की आराधना का त्यौहार नवरात्रि आ रहा है। जो कि 17 अक्टूबर से प्रारंभ होगा। इस नवरात्रि को शारदीय नवरात्रि कहते हैं तथा यह अश्वनी माह के शुक्ल पक्ष के प्रतिपदा से प्रारंभ होता है। हर बार यह त्यौहार पितृ मोक्ष अमावस्या के अगले दिन से प्रारंभ होता है। परंतु इस वर्ष 3 सितंबर से अधिमास के कारण यह पितृ मोक्ष अमावस्या के 1 माह बाद अर्थात 17 अक्टूबर से प्रारंभ हो रहा है।
1 वर्ष में चार नवरात्रि में होती हैं। दो प्रकट नवरात्रि तथा दो गुप्त नवरात्रि। प्रकट नवरात्रि में पहली चैत्र मास में चेत्र नवरात्रि तथा दूसरी अश्वनी मास में शारदीय नवरात्रि। गुप्त नवरात्रि भी दो होती हैं। पहली आषाढ़ मास में दूसरी पौष मास में। प्रगट नवरात्रि भक्तजन माँ दुर्गा के नौ रूपों की आराधना करते हैं। गुप्त नवरात्रि में माँ दुर्गा के अन्य 10 रूपों की उपासना होती है। गुप्त नवरात्रि में तांत्रिक क्रियाओं तथा अन्य सिद्धियों की सिद्धि हेतु पूजा अर्चना की जाती है।
नवरात्र के वैज्ञानिक पक्ष की तरफ अगर हम ध्यान दें तो हम पाते हैं कि दोनों प्रगट नवरात्रों के बीच में 6 माह का अंतर है। चैत्र नवरात्रि के बाद गर्मी का मौसम आ जाता है तथा शारदीय नवरात्रि के बाद ठंड का मौसम आता है। हमारे महर्षियों ने शरीर को गर्मी से ठंडी तथा ठंडी से गर्मी की तरफ जाने के लिए तैयार करने हेतु इन नवरात्रियों की प्रतिष्ठा की है।
नवरात्रि में व्यक्ति पूरे नियम कानून के साथ अल्पाहार एवं शाकाहार या पूर्णतया निराहार व्रत रखता है। इसके कारण शरीर का डिटॉक्सिफिकेशन होता है, अर्थात शरीर के जो भी विष तत्व है वे बाहर हो जाते हैं। पाचन तंत्र को आराम मिलता है।
लगातार 9 दिन के आत्म अनुशासन की पद्धति के कारण मानसिक स्थिति बहुत मजबूत हो जाती है। जिससे डिप्रेशन, माइग्रेन, हृदय रोग आदि बिमारियों के होने की संभावना कम हो जाती है।
वर्ष के बीच में जो हम एक-एक दिन का व्रत करते हैं, उससे मानसिक स्थिति मजबूत नहीं हो पाती है केवल पाचन तंत्र पर ही उसका प्रभाव पड़ता है। देवी भागवत के अनुसार सबसे पहले माँ ने महिषासुर की सेना का वध किया था, उसके बाद उन्होंने महिषासुर का वध किया। महिषासुर का अर्थ होता है ऐसा असुर जो कि भैंसें के गुण वाला है, अर्थात जड़ बुद्धि है। महिषासुर का विनाश करने का अर्थ है, समाज से जड़ता का संहार करना। समाज को इस योग्य बनाना कि वह नई बातें सोच सके तथा निरंतर आगे बढ़ सके।
समाज जब आगे बढ़ने लगा तो आवश्यक था कि उसकी दृष्टि पैनी होती तथा वह दूर तक देख सकता। अतः तब माता ने धूम्रलोचन का वध कर समाज को दिव्य दृष्टि दी। धूम्रलोचन का अर्थ होता है धुंधली दृष्टि। इस प्रकार माता जी ने धूम्रलोचन का वध कर समाज को दिव्य दृष्टि प्रदान की।
समाज में जब ज्ञान आ जाता है उसके उपरांत बहुत सारे तर्क वितर्क होने लगते हैं। हर बात के लिए कुछ लोग उस के पक्ष में तर्क देते हैं और कुछ लोग उस के विपक्ष में तर्क देते हैं। समाज की प्रगति और अवरुद्ध जाती है। चंड-मुंड इसी तर्क और वितर्क का प्रतिनिधित्व करते हैं। माता ने चंड-मुंड का वध कर समाज को बेमतलब के तर्क वितर्क से आजाद कराया।
समाज में नकारात्मक ऊर्जा के रूप में मनोग्रंथियां आ जाती हैं। रक्तबीज इन्हीं मनोग्रंथियों का प्रतिनिधित्व करता है। जिस प्रकार एक रक्तबीज को मारने पर अनेकों रक्तबीज पैदा हो जाते हैं, उसी प्रकार एक नकारात्मक ऊर्जा को समाप्त करने पर हजारों तरह की नकारात्मक ऊर्जा पैदा होती है। जिस प्रकार सावधानी से रक्तबीज को माँ दुर्गा ने समाप्त किया, उसी प्रकार नकारात्मक ऊर्जा को भी सावधानी के साथ ही समाप्त करना पड़ेगा।
नवरात्रि में रात्रि का दिन से ज्यादा महत्व है। इसका विशेष कारण है। नवरात्रि में हम व्रत, संयम, नियम, यज्ञ, भजन, पूजन, योग, साधना, बीज मंत्रों का जाप कर सिद्धियों को प्राप्त करते हैं।
इसका कारण है कि रात्रि में आवाज दूर तक जाती है, जबकि दिन के कोलाहल में आवाज़ दब जाती है। दिन में सूर्य की किरणें आवाज की तरंगों को रोकती है। शंख, घंटी की आवाज भी दिन में कम दूर तक जाती है, जबकि रात में ज्यादा दूर तक जाती है। दिन में वातावरण में कोलाहल रहता है, जबकि रात में शांति रहती है। नवरात्रि में सिद्धि हेतु रात का ज्यादा महत्व दिया गया है।
हमारे शरीर में नौ द्वार हैं। दो आँख, दो कान, दो नाक, एक मुख, एक मलद्वार तथा एक मूत्रद्वार द्वार। नौ द्वारों को सिद्ध करने हेतु पवित्र करने हेतु नवरात्रि का पर्व का विशेष महत्व है। नवरात्रि में किए गए पूजन-अर्चन, तप, यज्ञ, हवन आदि से यह नौ द्वार शुद्ध होते हैं।
नवरात्रि हमें यह भी संदेश देती है की सफल होने के लिए सरलता के साथ ताकत भी आवश्यक है। जैसे माता के पास कमल के साथ चक्र एवं त्रिशूल आदि हथियार भी है। समाज को जिस प्रकार कमलासन की आवश्यकता है, उसी प्रकार सिंह अर्थात ताकत, वृषभ अर्थात गोवंश , गधा अर्थात बोझा ढोने वाली ताकत तथा पैदल अर्थात स्वयं की ताकत सभी कुछ आवश्यक है।
माँ दुर्गा से प्रार्थना है कि वह आपको पूरी तरह सफल करें। आप इस नवरात्रि में जप-तप पूजन अर्चन कर मानसिक एवं शारीरिक दोनों रुप में आगे के समय के लिए पूर्णतया तैयार हो जाएं।
जय माँ शारदा
ज्योतिषाचार्य पंडित अनिल पांडेय
आसरा ज्योतिष, सागर
मध्य प्रदेश