Tuesday, October 22, 2024

Monthly Archives: April, 2020

खबर उड़ी है- रविशंकर पांडेय

खबर उड़ी है आज भेड़िए के फिर आने की घर घर में अफरा तफरी है जान बचाने की ! धीमी पड़ी रोशनी जलती हुई मशालों की रात-रात भर जाग रही बस्ती संथालों की, हिम्मत नहीं किसी की...

पंखुरी- दीप्ति शुक्ला

पंखुरी नरम मुलायम पंखुरी रसभरी, रंगभरी पंखुरी जो किरण देख मुस्काये पंखुरी जो देख अँधियारा कुम्लाये पंखुरी नाजुक पर चुभती नहीं पंखुरी काँटों से डरती नहीं पंखुरी स्वप्नपरी सी सुन्दर पंखुरी तरुवर को बनाती सुन्दर पंखुरी बिखरी तो धूल पंखुरी खिली तो फूल -दीप्ति...

बढ़ रहा है चाँद- निधि भार्गव मानवी

देखो बढ़ रहा है चाँद कई दिनों से आधा जो था आधेपन के इस दर्द को बखूबी जानता है वो... कहने को कितना विशाल है न ये आकाश, विस्तार की...

चाँद जैसा- रकमिश सुल्तानपुरी

इश्क़ करना मगर निभाना भी ज़ख्म खलता है यूँ पुराना भी दर्द देता है हर तरह मुझको चाँदनी रात का ये आना भी एक रिश्ता सा यार लगता...

पल भर में मंज़र- शिल्पा दुबे

रिश्ते बदलते देखा है, इंसान बदलते देखा है, पल भर में मंज़र और जहान बदलते देखा है लालच की लटकती पोटली बड़ी है, हवा में लटका दो, पीछे भागते इंसान...

इश्क़- दीपक क्रांति

चलते-चलते ठहरने का मज़ा ही कुछ और है, निखरने के लिए बिखरने का मज़ा ही कुछ और है इश्क़ खुद इश्क़ के काबिल है महबूबा हो...

अच्छी नहीं लगती- सत्यम भारती

मानव तेरी नादानियां अच्छी नहीं लगती नफरत की चिंगारियां अच्छी नहीं लगती थाती, राखी, बिंदी, महावर सब रूठ गए, सरहद पर कुर्बानियां अच्छी नहीं लगती काले-काले धंधे तेरे,...

कितना प्यार है- निधि भार्गव मानवी

कितना प्यार है न तुम्हारे दिल में मेरे लिए महफूज़ रखना चाहते हो मुझे, तुम हर बला से फिर चाहे वो शीतल हवा हो या कड़कती धूप कपकपाती ठंड हो...

ख़त वो पुराने- रकमिश सुल्तानपुरी

मिलते हैं यार अभी ख़लते हैं यार अभी आँखों के आँसू भी छलते हैं यार अभी लफ़्ज़ तेरी यादों के पलते हैं यार अभी सुन तेरे इश्क़ में जलते हैं यार...

जाने कैसा अज़ाब- अनिता सिंह

जाने कैसा अज़ाब आया है हर जगह खौफ़ ही का साया है बीच दरिया के डाल दी कश्ती हमने यूँ ख़ुद को आज़माया है चाँद, तारे सुकूं नहीं...

प्यार की बात- रूची शाही

प्यार की बात अब करूँ तो करूँ कैसे ज़ख्म इस दिल के भरूँ तो भरूँ कैसे मेरी नींद, खुशी, सुकून तक वो ले गया सब्र आखिर और...

एक आदमी के लिए- जसवीर त्यागी

एक कर्मठ स्त्री मालिक का घर सजाती-संवारती है एक सांवला लड़का हुज़ूर की मोटर-कार साफ करता है रगड़-रगड़कर तेरह-चौदह साल की दुबली पतली-सी एक लड़की साहब के बच्चों की करती है...

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