Monday, October 21, 2024

Monthly Archives: July, 2020

हायकू- मनोज शाह

ये बादल तो प्रकृति का सौगात जीवन कूल बादल है या इश्क़ की पेचीदगी मन व्याकुल बादल है या बारिशों का समुंद्र सावन झूमे जब छाये ये तब मालूम होता इश्क़े उन्माद छंट जाये ये तब मालूम...

पश्चिम बंगाल की इस गायिका की मुरीद हुईं लता मंगेशकर, ट्वीट कर की तारीफ

पार्श्व गायिका लता मंगेशकर के गीतों की पूरी दुनिया मुरीद है और उन्हें बार बार सुनना चाहती हैं। लेकिन लता मंगेशकर खुद भी एक...

Communalism as weapon of corrupt people: Afshan quraishi

In a symposium at our college, Respected Educationist Dr. Devraj Goyal had put a question before us- 'What is the difference between Independent Republic and...

तेरी कशमकश का- जयलाल कलेत

तेरी कशमकश का भी, मैं जवाब दे दूंगा, आज अल्फाज़ नहीं है, कल जवाब दे दूंगा सब्र कर और सदमा न दे, सम्भल जाने दे हिसाब दे दूंगा, सिसकियों के...

प्रेम का सागर- अतुल पाठक

प्रेम का सागर अनन्त है गहरा अविरत बहता कभी न ठहरा हर कोई चाहता प्रेम का सागर प्रेम बिन सूनी जग की गागर प्रेम का सागर हृदय भाव...

जीवन में करुणा- सोनल ओमर

जीवन एक वृक्ष है शतवर्षों तक डटकर आँधी-तूफान झेलने को सज्ज है इसकी विशालकाय रीति-रिवाज, परम्पराओं की काया अत्यंत घनी हैं फल, पुष्प, पत्तो की कई पीढ़ियाँ इसने जनी हैं इसपे प्रण, प्रतिज्ञा,...

तू है नागरिक ज़िम्मेदार- अफशां क़ुरैशी

स्वर किया मुखर अन्याय के विरुद्ध पाकर अभिव्यक्ति का अधिकार ग़लत ठहरा दी गई वो क्रान्तिकारी आवाज़ ही, फ़ासीवादियों की हुई जयकार नज़रबन्द है वो गर्भवती चरित्र हनन का सामना करती पैरोल...

मेरी मोहब्बत- गरिमा गौतम

मैं रहूँ या ना रहूँ तुम नजर आओ या न आओ फासले कम हो या ज्यादा बात हो या ना हो तेरे लिये प्यार कम हो न होगा दिल...

मिथिला- आलोक कौशिक

मिश्री जैसी मधुर है हमारी बोली हम प्रेमी पान मखान और आम के भगवती भी जहाँ अवतरित हुईं हम वासी हैं उस मिथिला धाम के संतानों को जगाने...

कृषक समाज और उनका मित्र केंचुआ- रामसेवक वर्मा

भारत एक कृषि प्रधान देश है। यहां सत्तर फीसदी लोग किसी न किसी रूप में कृषि से जुड़े हुए हैं। जंतु जगत में मनुष्य...

खूबसूरत- मनोज शाह

हर किसी को अपनी खूबसूरती पर घमण्ड होता है मैं बआज आपको खूबसूरती की परिभाषा बताता हूँ खूबसूरत है वो लब जिन पर दूसरों के लिए कोई दुआ आ...

अपने- अनिल कुमार मिश्र

डरती है दुनिया शत्रुओं से ज्ञात और अज्ञात वे काफी शक्तिशाली होते हैं आखिर शत्रु जो हैं रिश्तों के अंतरतम विवेक से परे संवेदनहीन, रक्तपिपासु आत्मा को अंदर छिपाए काल की प्रतिपल प्रतीक्षा अवसर का इंतज़ार। सौभाग्यशाली हैं वो जिनके शत्रु...

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