कृषक समाज और उनका मित्र केंचुआ- रामसेवक वर्मा

भारत एक कृषि प्रधान देश है। यहां सत्तर फीसदी लोग किसी न किसी रूप में कृषि से जुड़े हुए हैं। जंतु जगत में मनुष्य का जीवन जंतुओं से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित होता है। किसानों का अधिकांश जीवन जंतुओं के सहयोग पर निर्भर रहता है। केंचुआ एक ऐसा जंतु है जो कृषक समाज का निस्वार्थ रूप से सहयोग कर अपना दायित्व पूरा करता है।यही कारण है कि उसे किसानों का मित्र कहा जाता है।
केंचुए (फेरेटिमा)बहुत बड़ी संख्या में पाए जाते हैं, इसके अतिरिक्त एक दूसरे प्रकार का केंचुआ, जिसे यूटाइफ्स कहते हैं, पाया जाता है। वर्षा ऋतु में पानी बरसने के बाद केंचुए अपने बिलों से बाहर निकलकर गीली मिट्टी पर रेंगते दिखाई देते हैं। ये गीली मिट्टी मेंअपने बिल बनाकर रहते हैं और बिलों में पानी भर जाने के कारण बाहर निकल कर आ जाते हैं। प्राय: देखा जाता है कि जहां मिट्टी गीली रहती है, जैसे उद्यान, खेत और वृक्षों के नीचे की मिट्टी में छोटे-छोटे बिलों के मुंह के पास मिट्टी की गोलियों का छोटा सा ढेर या घुमावदार लंबी लंबी बेलनाकार मिट्टी के ट्यूब का ढेर होता है। यह केंचुए का मल होता है। इससे केंचुए के आवास का पता चल जाता है।
केंचुआ गीली मिट्टी को खाकर सुरंग बनाकर 30-50 सेंटीमीटर तक गहराई में रहते हैं।मिट्टी का गीला रहना तथा सभी भोज पदार्थों का उपस्थित होना उनके जीवित रहने के लिए आवश्यक है। अधिक गर्मी में यह अधिक गहराई में 3 मीटर तक चले जाते हैं, जहां अधिक नमी उपलब्ध हो जाती है। किसानों से मित्रता के स्वरूप:-केंचुए अपनी सुरंग बनाते समय मिट्टी खाते चले जाते हैं, जिससे यह मल की गोलियों के रूम में बराबर बाहर फेंकते रहते हैं। इस प्रकार खेतों उद्यानों आदि की मिट्टी बराबर पलटती रहती है और अंदर भी मिट्टी बाहर आती रहती है। जिससे औसतन प्रति वर्ष प्रति हेक्टेयर 4000 से 9000 किलोग्राम मिट्टी पलट जाती है। इससे खेत की मिट्टी पोली हो जाती है जिससे फसलों के पौधों की जड़ों को स्वसन हेतु वायु भली प्रकार मिलती रहती है। इससे फसलें अच्छा उत्पादन देती हैं।
फेरेटिमा अपना उत्सर्जी पदार्थ मिट्टी में डालते रहते हैं जिससे मिट्टी में नाइट्रोजन की मात्रा बढ़ जाती है और मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ती है। केंचुए अपने भोजन के रूप में वनस्पतियों के बाद जैसे मिट्टी पर गिरी हुई पत्तियां, पुष्पों एवं फलों के अंश खाते हैं और इन्हें खींच कर अपने बिलों में ले जाते हैं जो मिट्टी में ह्यूमस बनाते हैं। यह खाद का काम करता है, इससे मिट्टी की उपजाऊ शक्ति बढ़ती है‌।

-रामसेवक वर्मा
विवेकानंद नगर, पुखरायां
कानपुर देहात, उत्तरप्रदेश