Sunday, October 6, 2024
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कब है शरद पूर्णिमा 2024? जानें कोजागरी व्रत की खीर का महत्व, शुभ मुहूर्त, चंद्रोदय का समय

आश्विन मास की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा, कोजागरी पूर्णिमा अथवा रास पूर्णिमा भी कहते हैं। पौराणिक मान्यता है कि इस दिन चन्द्रमा सोलह कलाओं से परिपूर्ण होता है। हिन्दू पंचांग के अनुसार इस बार शरद पूर्णिमा बुधवार 16 अक्टूबर 2024 को मनाई जायेगी है।

हिंदू धर्म में शरद पूर्णिमा के दिन कोजागरी व्रत माना गया है। इसी को कौमुदी व्रत भी कहते हैं। इसी दिन श्रीकृष्ण ने महारास रचाया था। मान्यता है इस रात्रि को चन्द्रमा की किरणों से अमृत टपकता है। तभी इस दिन उत्तर भारत में खीर बनाकर रात भर में रखने का विधान है। इसके अलावा शरद पूर्णिमा के दिन माँ लक्ष्मी की पूजा भी की जाती है। मान्यता है कि इस दिन ही माँ लक्ष्मी का अवतरण हुआ था। ऐसा कहा जाता है कि शरद पूर्णिमा के दिन माँ लक्ष्मी सभी के घर जाती हैं और उन पर कृपा बरसाती हैं।

शुभ मुहूर्त एवं योग

हिंदू पंचांग के अनुसार इस साल अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि बुधवार 16 अक्टूबर की रात 8:40 बजे से शुरू होगी और गुरुवार 17 अक्टूबर को शाम 4:55 बजे पूर्णिमा तिथि का समापन होगा, ऐसे में शरद पूर्णिमा बुधवार 16 अक्टूबर को मनाई जाएगी। पूर्णिमा के दिन चंद्रोदय समय शाम 5.05 बजे रहेगा और लक्ष्मी पूजा का मुहूर्त बुधवार 16 अक्टूबर की रात 11:42 बजे से 12:32 बजे तक रहेगा। वहीं शरद पूर्णिमा के स्नान-दान का मुहूर्त उदयातिथि के अनुसार गुरुवार 17 अक्टूबर सुबह 4:43 बजे से सुबह 5.33 बजे तक रहेगा। 

शरद पूर्णिमा का महत्व

शरद पूर्णिमा का व्रत विशेष माना गया है। ऐसी मान्यता कि शरद पूर्णिमा का व्रत रखने से रोग से मुक्ति मिलती है। जो लोग गंभीर रोग से पीड़ित हैं उनके लिए शरद पूर्णिमा का व्रत रखना विशेष फलदायी माना गया है। इसके अलावा शरद पूर्णिमा का व्रत संतान की लंबी आयु के लिए भी रखा जाता है यह व्रत सुख समृद्धि लाता है। शरद पूर्णिमा की रात तांबे या मिट्टी के कलश पर वस्त्र से ढंकी हुई माँ लक्ष्मी की प्रतिमा को स्थापित कर पूजा करने का विधान बताया गया है। वहीं ज्योतिषाचार्यों के अनुसार शरद पूर्णिमा पर घी के 100 दीपक जलाने से घर माँ लक्ष्मी की कृपा बरसती है और नकारात्मक ऊर्जा का नाश होता है।

खीर का महत्व

शरद पूर्णिमा की रात दूध और चावल की खीर का विशेष महत्व है, कुछ स्थानों पर सिर्फ दूध की खीर बनाई जाती है, जिसे बासुंदी कहा जाता है। इस खीर को खुले आसमान के नीचे चांदराम की रोशनी में रखा जाता है, पौराणिक मान्यता है कि चंद्र किरणों के संपर्क में ये आकर इस खीर में औषधीय गुण समाहित हो जाते हैं, जिससे अनेक गंभीर रोगों से मुक्ति मिल जाती है।

ऐसा माना जाता है कि शरद पूर्णिमा का चंद्रमा अन्य दिनों के अपेक्षा आकार में बड़ा और औषधीय गुण प्रदान करने वाला होता है और शरद पूर्णिमा की रात चंद्रमा की किरणों से अमृत बरसता है। वहीं ज्योतिषाचार्यों के अनुसार सफेद रंग की वस्तुओं का संबंध चंद्रमा और शुक्र ग्रह से होता है, इसलिए इस दिन दूध-चावल की खीर चांदी के बर्तन में खाने से कुंडली में चंद्रमा और शुक्र ग्रह भी मजबूत होते हैं।

श्रीमद् भगवद्गीता में श्रीकृष्ण ने चंद्रमा के बारे में कहा है कि-

पुष्णामि चौषधी: सर्वा:
सोमो भूत्वा रसात्मक:।।

अर्थात- ‘मैं ही रसमय चन्द्रमा के रूप में समस्त ओषधियों को पुष्ट करता हूं।’

शरद पूर्णिमा पूजा विधि

शरद पूर्णिमा को प्रात:काल ब्रह्ममुहूर्त में सोकर उठें। इसके बाद नित्यकर्म से निवृत्त होकर स्नान करें और साफ कपड़े पहनें। शरद पूर्णिमा के दिन लक्ष्मी नारायण की पूजा की जाती है। इसके लिए पूर्णिमा वाली सुबह घी के दीपक जलाकर तथा गंध-पुष्प आदि से अपने इष्ट देवों, लक्ष्मी और इंद्र की आराधना करें। नारदपुराण के अनुसार इस दिन रात में माँ लक्ष्मी अपने हाथों में वर और अभय लिए घूमती हैं। जो भी उन्हें जागते हुए दिखता है उन्हें वह धन-वैभव का आशीष देती हैं। शाम के समय चन्द्रोदय होने पर चांदी, सोने या मिट्टी के दीपक जलाने चाहिए। इस दिन घी और चीनी से बनी खीर चन्द्रमा की रोशनी में रखनी चाहिए। जब रात्रि का एक पहर बीत जाए तो यह भोग लक्ष्मी जी को अर्पित कर देना चाहिए। 

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