Tuesday, November 26, 2024
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दशहरा 2024: विजयादशमी के दिन शमी वृक्ष के पूजन का महत्व और पौराणिक कथा

ऐस्ट्रो ऋचा श्रीवास्तव

विजयादशमी या दशहरा पर्व शारदीय नवरात्रि के ठीक बाद आश्विन मास की दशमी तिथि को बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। इसे विजयादशमी इसलिए कहते हैं कि पौराणिक काल में भगवती दुर्गा ने नौ दिनों तक लगातार भीषण युद्ध करके महिषासुर का वध दशमी तिथि को किया था। साथ ही त्रेतायुग में भगवान श्री राम ने भी भीषण संग्राम के बाद महाबली रावण का वध करके लंका पर विजय प्राप्त की थी।

वैसे मुख्यतः विजयादशमी को श्री राम की विजय से ही जोड़कर देखते हैं। भगवान राम को धर्म, सत्य, ज्ञान, और देवत्व का प्रतीक माना जाता है, जबकि रावण को अधर्म, असत्य,अहंकार और दानवत्व का प्रतीक माना जाता है। इस प्रकार यह त्यौहार ज्ञान की अहंकार पर, सत्य की असत्य पर और धर्म की अधर्म पर विजय माना जाता है। 

अपने कार्यों में सफलता की कामना रखने वाले लोगों को इस दिन दसों दिशाओं का पूजन करना चाहिए। इससे उनके मनोवांछित कार्य पूरे होते हैं।

इस वर्ष कब है विजयादशमी?

इस वर्ष 2024 में विजयादशमी का पर्व शनिवार 12 अक्टूबर को मनाया जायेगा।

पूजन का मुहूर्त

विजया पूजन मुहूर्त- दोपहर 2:05 बजे से दोपहर 2:50 बजे तक

अपरान्ह मुहूर्त- दोपहर 1:16 बजे से दोपहर 3:25 बजे तक 

दशमी के दिन किसका होता है पूजन?

इस दिन भगवती अपराजिता के साथ ही भगवती जया और विजया का पूजन किया जाता है। दशमी वाले दिन जब सूर्यास्त होने लगता है और आसमान में कुछ तारे दिखने लगते हैं, तो यह अवधि विजय मुहूर्त कहलाती है। इसी मुहूर्त में भगवान राम ने विजया माता की आराधना कर दुष्ट रावण का वध किया था।

महाभारत काल में इसी मुहूर्त में अर्जुन ने शमी वृक्ष से गांडीव धनुष और अस्त्र शस्त्र उतार कर शरीर पर धारण किये थे और शत्रुओं पर विजय प्राप्त की थी। इस पावन दिन पर आयुध या अस्त्र-शस्त्रों के साथ ही शमी वृक्ष के पूजन का भी विधान है। शमी वृक्ष को तेजस्विता और दृढ़ता का प्रतीक भी माना गया है। भविष्य पुराण में लिखा है कि यदि दशहरे के दिन व्यक्ति गंगाजल में खड़ा होकर गंगा जी की पूजा करता है और गंगा स्रोत को पढ़ता है तो उसके सभी पापकर्म मिट जाते हैं।

शमी वृक्ष पूजन की पौराणिक कथा

एक बार माता पार्वती ने भगवान शिव से विजयादशमी के दिन शमी के वृक्ष के पूजन के विधान का संदर्भ जानना चाहा। तब भगवान शिव नें बताया कि पांडवों द्वारा जुए में राजपाट हार जाने के बाद दुर्योधन ने पांडवों को 12 वर्षतक वनवास और एक वर्ष का अज्ञातवास की शर्त रखी थी। यदि तेरहवें वर्ष उनका पता चल जाएगा तो उन्हें पुनः 12 वर्ष का वनवास भुगतना पड़ेगा। इस कारण अर्जुन ने क्षत्रिय वेश त्याग कर अपने अस्त्र शस्त्र शमी के पेड़ पर टांग दिए और राजा विराट के राज्य में सेवाकार्य के लिए आ गए। जब उनके राज्य के गौ वंश को हड़पने के लिए कुरु राजकुमारों नें हमला किया तो विराट नरेश के पुत्र उत्तर के साथ मिलकर उन्होंने शमी वृक्ष से गांडीव धनुष सहित अन्य अस्त्र शस्त्र शमी वृक्ष से उतार कर पुनः धारण किये और युद्ध में विजयी हुए। उस दिन दशमी तिथि थी। उस एक वर्ष के अज्ञातवास के दौरान शमी के वृक्ष नें अर्जुन के अस्त्र शस्त्रों की रक्षा की थी। तब उसे पूजनीय होने का वरदान मिला था। तब से दशमी के दिन शमी वृक्ष पूजन का प्रचलन शुरू हुआ।

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