क्यों सबसे प्राचीन है जबलपुर का खेल इतिहास-6: पंकज स्वामी
(भोपाल में स्पोर्ट्स यूनिवर्सिटी के गठन की बात से जबलपुर व महाकोशल के खिलाड़ी, खेल संगठन और खेल प्रेमी उद्वेलित हैं। संभवत: जबलपुर का खेल इतिहास पूरे मध्यप्रदेश में सबसे पुराना है। जबलपुर को एक समय मध्यप्रदेश की खेलधानी का तमगा हासिल था। यहां सभी खेलों के मुख्यालय थे। जबलपुर से ही खेलों की शुरुआत हुई और उनका पूरे मध्यप्रदेश में प्रसार हुआ। जबलपुर के खेल इतिहास सिरीज में आप पांच किश्त पढ़ चुके हैं। यह छठी किश्त है। प्रयास होगा कि सभी खेलों का इतिहास यहां प्रस्तुत हो पाए।)
पिछले से जारी (फुटबाल)………….
शुरुआत में क्लब द्वारा प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाता था परन्तु 1943 में जबलपुर में प्रतियोगिताओं का आयोजन बीपी तिवारी (स्काउट) व मिर्जा फ़कीर करने लगे। 1946 में जबलपुर डिस्ट्रिक्ट फुटबाल एसोसिएशन का गठन हुआ और एचआर पवार व बीपी तिवारी क्रमश: इसके अध्यक्ष व सचिव बने। यह संघ एमपीएफए से मान्यता प्राप्त हुआ। रिटायर्ड डीपीआई एसएस स्टेले और डा. आरपी दुबे ने फुटबाल को पाला पोस कर संरक्षण दिया। उस समय नर्बदा कप, स्काउट शील्ड, जैकब मेमोरियल जैसी प्रतियोगिताएं शुरु हुईं। 1955 में जबलपुर में रशियन इलेवन और सीएम इलेवन का एक प्रदर्शन मैच खेला गया। सीएम इलेवन के कप्तान भारतीय टीम के कप्तान मेवालाल थे। इस मैच में रशियन टीम के सुरक्षा पंक्ति में तीन फुल बैक के फार्मेशन को जबलपुर ने पहली बार देखा और यहां के फुटबाल खिलाड़ी इस फार्मेशन से आकर्षित हुए। जबलपुर के फुटबाल खिलाड़ियों ने इस फार्मेशन को अपनाया और खेलना शुरु किया। संभवत: देश में पहली बार इस फार्मेशन को जबलपुर के फुटबाल खिलाड़ियों ने अपने खेल में प्रयोग किया।
1957 में जबलपुर विश्वविद्यालय के गठन के पश्चात् विद्यार्थियों ने फुटबाल में रुचि ली और जल्द उन्होंने उत्कृष्ट खेल का प्रदर्शन करना शुरु कर दिया। सीआर सिंक्यलेयर जबलपुर विश्वविद्यालय की फुटबाल टीम के कोच बने। उनकी कोचिंग के जबलपुर विश्वविद्यालय की फुटबाल टीम ज़ोनल फाइनल में दो बार प्रविष्ट हुई। जबलपुर विश्वविद्यालय और कलकत्ता विश्वविद्यालय के मध्य फाइनल मुकाबला पांच बार खेला गया, जिसमें पांचों बार दोनों टीमें बराबर पर (ड्रा) खेलीं। दोनों टीमों के मध्य पांच बार खेला गया फाइनल मैच में इतना तनाव था कि इन्हें तीन बार जबलपुर में और दो बार नागपुर में आयोजित करना पड़ा। अंतिम व पांचवें मुकाबले में फैसला सिक्का उछाल कर करना पड़ा जिसमें भाग्य ने कलकत्ता विश्वविद्यालय का साथ दिया।
जबलपुर में संतोष ट्राफी आयोजन की शुरुआत 1959 में हुई। सबसे पहले यहां संतोष ट्राफी का ज़ोन 2 प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। जबलपुर में सेंट्रल रेलवे में कार्यरत सुंदरलाल को भारतीय टीम में प्रशिक्षण प्राप्त करने के लिए आमंत्रित किया गया। वे 1956 मेलबोर्न ओलंपिक में भाग लेने वाली भारतीय टीम में स्टेंड-बॉय खिलाड़ी के रूप में चुने गए। रजक स्पोर्ट्स ने 1949 में गोंदिया में ऑल इंडिया कप जीता। जबलपुर स्पोर्टिंग व ब्लूज क्लब ने क्रमश: नौगांव (असम) व आगरा में उत्कृष्ट प्रदर्शन से दर्शकों का दिल जीत लिया। नवोदित खिलाड़ियों के प्रोत्साहन की दृष्टि से स्थानीय स्तर पर तीन प्रतियोगिताओं का आयोजन शुरु हुआ। एपीएन नर्मदा स्कूल मोदीबाड़ा ने अस्सी के दशक में दो बार सुब्रतो कप के लिए क्वालीफाई किया। नवीन विद्या भवन स्कूल तो सुब्रतो कप के सेमीफाइनल तक पहुंची। एस. अंथोनी (बादल) एशियन स्कूल ट्राफी में भाग लेने वाली भारतीय टीम में प्रशिक्षण के लिए बुलाए गए। उस समय पी. दामोदरन, चिन्नपा, दुर्गा प्रसाद, एरिक स्वामी व आरसी रजक ने अपने उत्कृष्ट खेल से सिर्फ जबलपुर ही नहीं राष्ट्रीय स्तर पर प्रशंसित हुए।
वर्ष 1968 में जबलपुर मध्यप्रदेश फुटबाल संघ का मुख्यालय बना। इसमें सबसे बड़ी भूमिका महबूब रज़ा की रही। उन्होंने जबलपुर में फुटबाल को बढ़ावा देने में सर्वाधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 1968 व 1970 में जबलपुर विश्वविद्यालय ने क्रमश: ऑल इंडिया यूनिवर्सिटी का खिताब जीता। जबलपुर विश्वविद्यालय ने क्रमश: पंजाब व कलकत्ता विश्वविद्यालय को पराजित किया।
कार्पोरेशन कमिश्नर एलपी तिवारी के प्रयास से 1966 में कार्पोरेशन गोल्ड कप फुटबाल टूर्नामेंट की शुरुआत हुई। प्रयितोगिता के प्रथम वर्ष में जबलपुर की रजक स्पोर्ट्स विजेता बनी। 1967 में तो कार्पोरेशन गोल्ड कप में मोहन बागान, ईस्ट बंगल व मफतलाल की टीमें खेलने आईं। इस वक्त ही रशियन टीम के साथ यहां एक प्रदर्शन मैच आयोजित हुआ। जबलपुर के जार्ज एम्ब्रोस गोआ की वास्को टीम के लिए खेले। उन्होंने 1972 व 1973 में भारतीय टीम का प्रतिनिधित्व किया।
आरसी (राम चरण) रजक को एक बार कलकत्ता के प्रसिद्ध फुटबाल क्लब मोहन बागान ने अपनी ओर से खेलने का प्रस्ताव दिया था, लेकिन उन्होंने डा. जी. पी. अग्रवाल की सलाह को मानते हुए अकादमिक कैरियर को चुना। राम चरण रजक ने वर्ष 1962 से 65 तक जबलपुर विश्वविद्यालय का प्रतिनिधित्व किया। इसके बाद राम चरण रजक ने संतोष ट्राफी में मध्यप्रदेश का प्रतिनिधित्व किया। आईएफए शील्ड कलकत्ता, रोवर्स कप बंबई, डीसीएम फुटबाल टूर्नामेंट दिल्ली में वे खूब खेले। दो बार मध्यप्रदेश के कप्तान रहे। भारतीय, मध्यप्रदेश व जबलपुर के फुटबाल सर्किल में वे राम चरण के नाम से लोकप्रिय व विख्यात हुए। फुटबाल के शौकीन लोग उन्हें ‘फ्लाइंग गोल’ दागने से याद करते हैं। भारत में क्लब फुटबाल में सबसे पहले विदेशी खिलाड़ियों को खिलाने का श्रेय कलकत्ता के मोहन बागान, ईस्ट बंगाल या मोहम्मडन स्पोर्टिंग को नहीं है, बल्कि यह श्रेय जबलपुर के ब्लूज क्लब को है। ब्लूज क्लब के जनक प्रो. डा. आरसी रजक की पारखी नज़र थी कि उन्होंने दो ईरानी फुटबाल खिलाड़ियों माजिद बिस्कर व जमशेद नासीरी को परम्परा को ताक पर रख कर अपने फुटबाल क्लब से खेलने के लिए आज से 45 साल पहले वर्ष 1979 में मैदान में उतारा था। दोनों ईरानी फुटबाल खिलाड़ियों के कारण स्थानीय फुटबाल का स्तर सुधरा। बाद में ये दोनों ईरानी खिलाड़ी ईस्ट बंगाल के लिए खेले।
आरसी (राम चरण) रजक जब भी बाहर खेलने जाते थे, अपने कोर्स की किताबें ले जाते थे। मैच के बाद फ़्रेश होकर पढ़ाई कर लेते थे। एमएससी फ़ाइनल में इंटर यूनिवर्सिटी खेलने श्रीनगर गए तब भी ऐसा ही किया और एमएससी में टॉप किया।
(आगे पढ़िए लॉन टेनिस के बारे में) जारी रहेगा…………….