प्रयागराज (हि.स.)। सम्राट हर्षवर्धन की 1400 साल पुरानी परम्परा प्रयागराज में बाहर से यहां आने वालों के लिए महाकुम्भ का आकर्षण बन रही है। सम्राट हर्षवर्धन महाकुम्भ के दौरान प्रयागराज में दान के लिए सबसे प्रसिद्ध सम्राटों में से एक हैं। कुम्भ के दौरान वो पैसे और जेवरात ही नहीं बल्कि यहां से जाते समय अपने वस्त्र तक दान कर जाते थे। यही परम्परा महाकुम्भ से पहले ही योगी सरकार के निर्देश पर प्रयागराज में शुरू कर दी गई है।
प्रयागराज में कई स्थानों पर सरकार ने सेंटर स्थापित किए हैं, जहां लोग अपने वस्त्र, उत्पाद दान कर जाते हैं, जो गरीबों में वितरित किया जाता है। यहां महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, राजस्थान से बड़ी संख्या में लोग पहुंच रहे हैं। महाराष्ट्र से आए विभिन्न संस्थाओं के एक दल ने गरीबों को वितरित किए जा रहे वस्त्र देखकर योगी सरकार की जनकल्याणकारी योजनाओं की सराहना की।
सर्वस्व कर देते थे दान
देश की पहली हिन्दी मासिक पत्रिका सरस्वती के सम्पादक अनुपम परिहार सातवीं शताब्दी में भारत आए चीनी यात्री की पुस्तक का जिक्र करते हैं। परिहार बताते हैं कि प्राचीन काल से भारत में कुम्भ का उत्साह देखने को मिलता है। सातवीं शताब्दी के दौरान भारत में सम्राट हर्षवर्धन इस सबसे बड़े धार्मिक आयोजन के दौरान एक बड़ा उत्सव मनाया करते थे। उनके बारे में कहा जाता है कि वर्षों तक एकत्र किया गया धन यहां प्रयाग आकर दान कर दिया करते थे। यहां तक कि इतना बड़ा समारोह करीब 75 दिनों तक चलाया जाता था। यहां से जाते-जाते सम्राट हर्षवर्धन अपना सर्वस्व स्थानीय लोगों को दे देते। कहा जाता है कि हर्षवर्धन यहां अपना वस्त्र तक दान कर दिया करते थे। सम्राट के समय की यह परम्परा योगी आदित्यनाथ की सरकार की पहल पर प्रयागराज में भी यह परम्परा शुरू हो गई है। जहां लोग स्वेच्छा से दान करते हैं और जरूरतमंद वहां से अपनी आवश्यकता की चीजें ले जाते हैं।
समारोह देखकर दंग रह गया था व्हेनसांग
सम्पादक अनुपम परिहार ने प्रयागराज में कुम्भ के प्राचीनतम आयोजन के बारे में बताया। उनका कहना है कि सातवीं शताब्दी में भारत आया चीनी यात्री यहां पर महाकुम्भ के इतने बड़े धार्मिक समारोह को देखकर दंग रह गया। चीन जाकर व्हेनसांग ने अपनी पुस्तक शि यू की में यहां के धार्मिक आयोजन का भी जिक्र किया है।
महाकुम्भ में 650 पांडुलिपियां दान में लेकर चीन गया व्हेनसांग
चीन से 1400 वर्ष पूर्व भारत आए यात्री व्हेनसांग ने देश के विभिन्न स्थानों की यात्रा की। जब उसे यहां के प्रतापी राजा सम्राट हर्षवर्धन के बारे में पता चला तो वह सम्राट से मिलने जा पहुंचा। इसी दौरान उसे यहां आयोजित हो रहे दुनिया के सबसे बड़े सांस्कृतिक कार्यक्रम महाकुम्भ की जानकारी हुई। इसके बाद चीनी यात्री महाकुम्भ देखने चल पड़ा। यही नहीं भारत के प्राचीन ग्रंथों को लेकर अपनी जिज्ञासा शांत करने के लिए उसने सम्राट से दान के रूप में भारत की प्राचीनतम पांडुलिपियां मांगीं। अनुपम परिहार बताते हैं कि इसी के बाद महाकुम्भ के दौरान व्हेनसॉन्ग करीब साढ़े छह सौ भारतीय पांडुलिपियां दान में लेकर चीन गया और वहां जाकर अपनी पुस्तक में महाकुम्भ के जिक्र के साथ- साथ भारत का वर्णन किया।