नई दिल्ली (हि.स.)। एशिया में मानवीय चिकित्सा नवाचार और अनुसंधान को बढ़ावा देने के लिए आरएमएल अस्पताल ने डॉक्टर्स विदाउट बॉर्डर्स के साथ मिलकर शुक्रवार को इंडिया हैबिटेट सेंटर दिल्ली में एक कार्यक्रम का आयोजन किया। जिसमें करीब 200 स्वास्थ्य विशेषज्ञों के साथ शोधकर्ताओं, शिक्षाविदों और मरीजों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया।
इस दौरान आम व्यक्ति के जीवन में आने वाली स्वास्थ्य संबंधी चुनौतियों के साथ टीबी रोग से उबर चुके रोगियों की कहानियों और समुदाय आधारित देखभाल मॉडलों पर चर्चा की गई। इस दौरान एंटी माइक्रोबियल रेजिस्टेंस (एएमआर) पर भी विचार-विमर्श हुआ। जिसमें नए एंटीबायोटिक्स और निगरानी प्रणालियों की आवश्यकता पर बल दिया गया। इसके अलावा स्वास्थ्य असमानताओं, विशेष रूप से ट्रांसजेंडर समुदाय और दिव्यांग महिलाओं की चुनौतियों के समाधान तलाशने के प्रयास किए गए।
कार्यक्रम में डॉक्टर विदाउट बॉर्डर दक्षिण एशिया की कार्यकारी निदेशक डॉ फरहत मंटो, आरएमएल अस्पताल के चिकित्सा निदेशक डॉ अजय शुक्ला, डॉ सुजाता मैथ्यू और डॉ पुलिन गुप्ता मौजूद रहे। इस अवसर पर डॉ मंटो ने कहा, डॉक्टर्स विदाउट बॉर्डर्स एक अंतरराष्ट्रीय, स्वतंत्र चिकित्सा मानवीय संगठन है। 70 से अधिक देशों में यह संगठन संकट में फंसे लोगों की जान बचाने और उनके कष्टों को कम करने के लिए मानवीय चिकित्सा सहायता प्रदान करते हैं।
ट्रांसलेशनल हेल्थ साइंस एन्ड टेक्नोलॉजी इंस्टीयूट, फरीदाबाद की बायो डिजाइन फेलो डॉ जयंती कुमारी ने शुक्रवार को डॉक्टर विदाउट बॉर्डर और आरएमएल अस्पताल की ओर से आयोजित कार्यक्रम में बताया कि फिलहाल स्वास्थ्य विशेषज्ञ लोगों के मुख कैंसर की जांच उनके मुंह के अंदर की स्थिति को देखकर करते हैं जो 50 फीसदी सही नहीं होता। वहीं, बायोप्सी जांच का परिणाम तो सटीक होता है लेकिन जांच के लिए व्यक्ति के शरीर से मांस का टुकड़ा लिया जाना और जांच की दर महंगी होने के कारण लोग अक्सर जांच कराने से कतराते हैं। ऐसे में ओरल कैंसर स्क्रीनिंग किट महज 100 रुपये में ओरल कैंसर जांच का सटीक परिणाम देती है।
डॉ जयंती के मुताबिक इस किट के विकास का उद्देश्य लोगों को ओरल कैंसर जांच की सुविधा बेहद सस्ती दरों पर मुहैया कराना है। ताकि उन्हें दर्दनाक बायोप्सी टेस्ट और अन्य महंगी जांचों से बचाया जा सके और वे उचित समय पर अपना इलाज शुरू करवा सकें। फिलहाल, इस किट का लैब मूल्यांकन हो चुका है। अब ईएसआईसी अस्पताल में इसका क्लीनिकल ट्रायल चल रहा है। वहां आशा कार्यकर्ता व्यक्ति के मुंह की लार की महज एक बूंद किट में डालती है और कुछ ही पलों के बाद परिणाम मिल जाता है। अगर किट में एक लाइन दिखती है तो व्यक्ति सुरक्षित है और अगर दो लाइन दिखती है तो व्यक्ति जोखिम में है। उसे तुरंत ही ओरल कैंसर के इलाज की प्रक्रिया शुरू कर देनी चाहिए।