मेरी थियेटर की कक्षाओं में हमेशा बताया जाता है
अपनी कला को साधने के लिए
जरूरी है अपनी सांस को साधना,
जब मुझसे पूछा गया
मेरी सांस के बारे में
मैं तुम्हारे बारे में बताता रहा,
सभी लोग मुझे ऐसे सुन रहे थे
जैसे मैं
अभिनय सिद्धांतों की व्याख्या कर रहा हूँ,
तभी अचानक से नौ रस
अपनी पूर्ण तीव्रता के साथ
आकाशगंगा की तरह मेरे चारों ओर घूमने लगे
रसों की आपसी टकराहट से उत्पन्न ताप से
मेरा शरीर सूर्य की तरह जलने लगा था,
तब तुमने भर लिया था मुझे
अपनी बांहों में
और बचा लिया था
एक कला को नष्ट होने से,
और मैंने अपने होंठों से
तुम्हारे माथे पर
जीवन की सबसे खूबसूरत
कलाकृति बनाते हुए जाना था
कलाएं केवल प्रशिक्षण से नहीं सीखी जाती
कलाओं को साधने के लिए
जरूरी है जीवन में राग और ताप का होना
-ललित सिंह
रंगकर्मी, शोधार्थी- हिंदी विभाग,
दिल्ली विश्वविद्यालय