अरसे बीत गए
मग़र मैंने उम्मीद नहीं छोड़ी
काश मेरी हर उम्मीद पर
तुम उम्मीद रख पाते
एक बार तो आवाज़ दी होती
सबकुछ ख़त्म करने से पहले
एक बार तो पुकारा होता
क्या पता टूटे हुए दिल
फिर से जुड़ जाते
इसी उम्मीद से
अगर दुःख है तो
सुख भी है
सुख के रास्तों को भी
हमदोनों ढूंढ निकालते
क्या पता रास्ते तलाशते हुए
हमदोनों एक-दूसरे के
भीतर की ख़ामोशी को
तलाश पाते
कुछ तो हल ज़रूर निकलता
इसी उम्मीद के सहारे
आज तक बैठी हूँ कि
काश… कोई करिश्मा हो
और मेरी हर उम्मीद
पूरी हो जाए
-डॉ विभाषा मिश्र
रायपुर, छत्तीसगढ़