मेरा सपना- डॉ विभाषा मिश्र

हर सपना सच नहीं हो सकता
हर अपना-अपना नहीं हो सकता
सपनें तो कई बार सच भी हो जाते हैं
मग़र क्यों अपने-अपने नहीं हो पाते
सपनें में एक-बार मेरे अपने ने
जिसे केवल मैंने ही अपना मान लिया
आकर मुझसे पूछा- तुम कौन हो?
जो मुझे रोज़ अपने सपनों में बुलाती हो।
मैंने कहा-मैं वही हूँ जो अपने सपनें में रोज़
तुम्हारे साथ रहने के सपनें बुनती हूँ
अपने ने कहा-क्या तुम मुझे बाँधना चाहती हो?
मैंने कहा-कि तुम तो हर बंधन से मुक्त हो
मैंने तो सिर्फ़ सपनों में ही तुम्हें अपना माना
अपने ने हँसकर कहा-ऐ पगली!
जो तेरा सपने में न हो सका
उसे तू क्यों जीये जा रही है
मैंने कहा-बस इसी उम्मीद से कि कई बार
कुछ सपनें भी सच हो जाया करते हैं
अपने ने जवाब में कहा-तू ग़लत है
कभी सपनें भी सच होते हैं।
मैंने कहा- हाँ! जब अपने सच होते हैं
तब सपनें भी सच हो जाया करते हैं

-डॉ विभाषा मिश्र
रायपुर, छत्तीसगढ़