सच का स्वाँग रचाते क्यों हो?
सच से तुम घबराते क्यों हो?
रिश्ते झूठे या सच्चे हों,
रिश्तों को अजमाते क्यों हो?
जी भर रो लो, रोना अच्छा,
दर्द छिपा मुस्काते क्यों हो ?
तुम सच्चे हो मान रहा हूँ,
पर सच से कतराते क्यों हो?
सच होगा दुनिया समझेगी,
सच इतना समझाते क्यों हो?
मेरा भी तो दिल टूटा है ,
मुझको दर्द सुनाते क्यों हो?
क़द्र नही है जब रिश्तों की,
रिश्ते आप बनाते क्यों हो?
सच खुद ही बोलेगा, रकमिश,
सच की ढोल बजाते क्यों हो?
-रकमिश सुल्तानपुरी