आदिवासी की मौत
उस दिन होती है
जब नष्ट होता है
जल, जंगल, जमीन
और उनकी सभ्यता एवं संस्कृति
जहाँ सवार होता है कोई
हरामखोर,
पूँजीवादी,
जमींदार,
सदैव उनका शोषण करने वाला
आदिवासी की मौत
उस दिन होती है
जब किसी आदिवासी को होना पड़ता है
विस्थापित
खेतिहर मजदूर
और–
उतरना पड़ता है
कोयलों की बड़ी-बड़ी खदानों में
आदिवासी की मौत
उस दिन होती है जब
कागजों पर ही वनबंधु योजना
कागज के ही मूलनिवासी
कागजों पर ही कर रहे
वनबन्धुयोजना का उपयोग
आदिवासी की मौत
उसी क्षण होती है
जब किसी आदिवासी को रखा जाता है
शिक्षा के मौलिक अधिकार से वंचित
टेक्नोलॉजी से दूर
मीडिया से बाहर
आदिवासी की मौत
उस दिन होती है जब
नाश होती है–
जंगली जड़ी-बूटियाँ
महुआ, अर्जुन और पलास
आदिवासी की मौत
उस दिन होती है जिस दिन
आदिवासी ही
बनता है आदिवासी का दलाल
मिला लेता है अपना हाथ
ऊँच वर्ग के लोगों के साथ
आदिवासी की मौत
उस दिन होती है जब
आरक्षण के अधिकार से
वे पहुँच जाते हैं–
सड़क से संसद तक
लेकिन
अन्याय के प्रतिरोध में
कभी नहीं उठाते
अपने बदहाल समाज की बात
-डाॅ खन्ना प्रसाद अमीन
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