मुफलिसी में अपना ख्वाब बेचता हूंँ
ख़ारों के बीच गुलाब बेचता हूँ
हाकिमों ने चढ़ा रखा है भ्रष्ट चश्मा,
मैं कोर्ट के आगे शराब बेचता हूँ
चुनाव क्या है? पैसे का कारोबार है,
आ जा कुर्सियों का हिसाब बेचता हूँ
सुख, चैन, छीन कर कह उठा ये शहर,
मैं मगरूरियत का खिताब बेचता हूंँ
झूठ-फरेब के सहारे हैं साहिबे-मसनद,
लोक के तंत्र को बेनकाब बेचता हूंँ
-सत्यम भारती
भारतीय भाषा अध्ययन केन्द्र
परास्नातक द्वितीय वर्ष छात्र
जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी
नई दिल्ली-110067