दर्द अच्छा, रोज की ये मयकशी अच्छी नहीं
जानता हूँ आजकल की आशिक़ी अच्छी नहीं
जानने वाले बहुत हो पर न ख़िदमत हो जहां
बेवज़ह उन महफ़िलों में हाज़िरी अच्छी नहीं
आपके जज़्बात की जो कद्र कुछ करता न हो
सच कहूँ उस आदमी से दोस्ती अच्छी नहीं
लफ़्ज़ टूटे दिल से उभरे तो मुकम्मल शेर हो
बेवज़ह बिन बात के यूँ शाइरी अच्छी नहीं
राजनेता आम जनता के लिए कुछ तो करें
सिर्फ़ कोरी काग़जी ये बतकही अच्छी नहीं
हाँ चलो हम भी निभा लें एक दिन की बात हो
रोज की ये यार बोझिल मुफ़लिसी अच्छी नहीं
छोड़ दे रकमिश शिक़ायत ग़ैर की करना यहाँ
इश्क़ हो या जंग मसलन मुखबिरी अच्छी नहीं
-रकमिश सुल्तानपुरी
भदैयाँ, सुल्तानपुर, उत्तर प्रदेश