कल माननीय प्रधानमंत्री जी ने देश के आत्मनिर्भर होने की बात की। यदि कोरोना संकट के बाद देश आत्मनिर्भरता की ओर कदम बढ़ाता है तो संकट का अभिशाप वरदान में बदल सकता है। सबसे बड़ी बात तो यह हुई है कि देश के लोगों ने अपने सामर्थ्य की अद्भुत मिसाल पेश की है।
छोटा सा उदाहरण सामान्य मास्क का है। जहां पहले यह अनुपलब्ध था, वहीं कुछ दिनों बाद हज़ारों लोग इसे बनाने में जुट गए और कमी को काफी हद तक पूरा कर दिया। आत्मनिर्भरता की कोशिश सुरक्षा किट और जांच किट के क्षेत्र में भी हुई है। तो सवाल है कि भारत सामर्थ्यवान होने के बावजूद छोटी से छोटी चीज़ के लिए चीन पर क्यों निर्भर है?
इसका जवाब भी सरकार को ही देना है क्योंकि हमारे देश में एक ऐसा सिस्टम है जो लघु और मध्यम श्रेणी के उद्योगों को बेहद परेशान करता है। इसे हम एक छोटे से उदहारण से समझ सकते हैं कि यदि कोई व्यापारी चीन से सामान लाकर बेचता है तो उसे पांच स्तर पर सिस्टम परेशान करेगा, लेकिन वही व्यापारी यदि उस सामान को बनाने के लिए उद्योग स्थापित करता है तो सिस्टम उसे पचास स्तर पर परेशान करेगा।
हर स्तर पर होने वाली परेशानी का समाधान ले-देकर होता है और कीमत इतनी बढ़ जाती है कि देश में बना सामान चीन के मुकाबले बेहद महंगा हो जाता है। यदि सचमुच भारत को आत्मनिर्भर बनाना है तो सिस्टम को अपना व्यवहार बदलना होगा और राजनीति को भी बदले की भावना से ऊपर उठना होगा। कुल मिलाकर उस सिस्टम को सांता क्लॉज बनना होगा जो अभी छोटे और मध्यम उद्योगों के लिए ड्रेकुला बन जाता है।
-अशोक जमनानी