रक्षा करौ त्रिपुरारी
हल दुई चलें, भैंस घर लागे,
घर ढीली सुन्दर नारी
नौकरी की साज बाढी,
पर मालिक मिला कुपठारी
अब मोरी रक्षा करौ त्रिपुरारी
माहामारी के चक्कर में,
चाकरी गयी हमारी
रेल, जहाज सब बंद हुई गये,
सुन, घर बरज रहै महतारी
अब मोरी रक्षा करौ त्रिपुरारी
कैदी लेखा ज़िन्दगी हो गयी,
घर मालिक पडा पिछाडी,
भाडा मांग के तंग कर दीना,
इहां घेर लीन्ह महामारी
अब मोरी रक्षा करौ त्रिपुरारी
बाहर जो निकलैं ढंडा खावैं,
डाढी, केस सबै गये बाडी,
फैन चला बीजुली बिल बढ़गै,
सर पे कर्जा लदिगा भारी,
अब मोरी रक्षा करौ त्रिपुरारी
-वीरेन्द्र तोमर