चित्रा पंवार
प्रेम करने के नुकसान
और न करने के असंख्य फायदों में
मुझे बताया गया कई बार
लड़के थाल के पहले कोर सा चखते हैं लड़कियों को
फिर झूठा कर छोड़ देते हैं उन्हें
प्रेम में पड़ी लड़कियां नदी हो जाती हैं
और लड़के मन भर जाने पर
नदी को खाई में धकेल देने वाले पहाड़
स्त्री आत्मा की तरह धारण करती है प्रेम को
पुरुष कपड़ों की तरह हर रोज़ बदलता है उसे
फूलों की तरह कुर्बान हो जाने वाली प्रेमिकाओं को
जूतों के नीचे मसल कर बेपरवाह आगे बढ़ जाते हैं प्रेमी
तुमसे मिलने से पहले
लड़कों द्वारा लड़कियों को
बीच राह छोड़ जाने के असंख्य उदाहरण थे
मेरे सामने
मैंने जितनी भी कहानियां सुनी
उनकी नायिकाएं बेचारी, बेसहारा सताई हुई प्रेमिकाएं थीं
और प्रेमी!
साधु वेश में उन्हें छलने निकले रावण के प्रतिरूप
तुमसे मिलने से पहले मैं नहीं मिली थी
पलटकर उस पहाड़ से
जो चंचल प्रेमिका की खुशी के लिए पाषाण हो गया था
तुमसे मिलने से पहले
मैं नहीं देख पाई उन पूर्व जन्म के प्रेमियों को
जो भूले–भटके राहगीर के रूप में ही सही प्रिया के लौट आने की आस में रास्ते बन गए थे
तुमसे मिलने से पहले
मैं शिव को जानती थी एक ईश्वर के रूप में
प्रेयसी के शव को पीठ पर लादे रुदन करते प्रेमी तथा अर्धनारीश्वर शिव से मेरा साक्षात्कार
तुमसे मिलने के बाद ही हुआ
तुमसे मिलने से पहले किसी ने नहीं बताया मुझे
प्रेम में ठहरे उन लड़कों के बारे में जो
राह किनारे ऊंचे दरख्त बने आज भी कर रहे हैं
कल आने का वादा करके गई प्रेयसी का इंतजार
तुमसे मिलकर मैंने जाना
लड़कियों को प्रसाद समझ माथे से लगाने वाले लड़को के बारे में
तुमसे मिलकर मैं मिली देह से पहले आत्मा में उतरने वाले पुरुष से
तुमसे मिलकर समझ पाई
मैंने जो कहानियां सुनी वो मनगढ़ंत थीं, झूठी और बेबुनियाद थीं
अच्छा होता विशुद्ध प्रेमी प्रेम के कवि होते, कहानीकार होते
कहानियों में पिरोते अपना सच्चे मोती सरीखा प्रेम
अच्छा होता प्रेम में पड़े लड़के अधिकारी होते, पाठ्यक्रम बनाते, स्कूल चलाते
स्कूल की किताबों में अनिवार्यतः छपती प्रेम कहानियां
कितना अच्छा होता अगर प्रेमी ही होते पुजारी
पूजा स्थानों में चमत्कारों के स्थान पर गाए जाते प्रेम के भजन
कितना अच्छा होता अगर स्त्री विमर्श की सीढ़ी पर चढ़ कर
शीघ्र अतिशीघ्र नामचीन लेखिका बन जाने के मोह को त्याग कर
लेखिकाएं लिखती सच्चे प्रेमियों को खत
बांचती उनके दिल की चिट्ठियां….