आज फिर से बादलों ने
हृदय पर वज्र कठोर प्रहार किया,
जीवन जीने का आधार था
उसका छिन-भिन्न तारन-तार किया
बेदर्द पाथर क्या जाने
फसलों में भी जान होती है
लहलहाती,खनखनाती तभी बालें
जब किसानों के पांव लहू-लुहान होती है
जाड़ा,गर्मी और वर्षा
तन एक ताप किया रहता है,
जीने का आधार फसलों संग
बड़े-बड़े सपने संजोये रहता है
दिन रात एक कर फसलों को
कीड़े-मकोड़े,जंगली जानवरों से बचाया था
अपनी संग कुछ औरो की भलाई
उम्मीदों के आस लगाया था
पुकार पर न सुनने वाले ये बादल
बेमौसम ओलावृष्टि का कुठाराघात किया,
आज फिर से बादलों ने
हृदय पर वज्र कठोर प्रहार किया
-त्रिवेणी कुशवाहा ‘त्रिवेणी’