मेरी साँसों के पथ से गुज़रकर तुम
नया एक घर बना लेना
कभी मेरे दिल में बस जाना
कभी मुझको बसा लेना
इज़ाज़त मांगकर मेरी सुनो
कभी मुझे शर्मिंदा नहीं करना
उड़ जाऊँ तेरे पंखों से जब भी
काटकर पर गिरता परिंदा नहीं करना
कभी तो मर्ज़ी से अपनी तुम
मुझे अपने मन का सजा लेना
मोहब्बत करके जाना है,
कोई कैसे होता दीवाना है?
किसी के आगोश के साये में
होता कोई कैसे ख़ुद से बेगाना है
कभी मेरे आँचल में छिप जाना
कभी मुझे ख़ुद में छिपा लेना
शराबी सी तेरी आँखें हैं
नशीली सी निगाहें हैं
जमाने की बंदिशो से बेहतर
तो मुझे लगती तेरी पनाहें हैं
भटकें कभी राहों से जब भी हम
कभी तुझको संभालूँ मैं,
कभी तुम मुझको संभाल लेना
-अनामिका वैश्य आईना
लखनऊ, उत्तर प्रदेश