गिरते हुए नैतिक मूल्य- प्रीति चतुर्वेदी

झूठ न बोलना, चोरी न करना, विनम्रता
ही हमारी नैतिकता है
क्यों भूल गया है यह सब इंसान
बन गया है वह अब शैतान
न जाने कहां है हमारे नैतिक मूल्य
क्यों कर दिया उसने सब शून्य
अपने को आगे रखनेे के लिए
काट दिए दूसरों के सिर
क्यों घबराता तनिक नहीं इंसान
इसलिए जा पहुंचता हैं वह श्मशान

जन्म से बच्चा कोरा कागज़ है
बड़ा होते ही आ जाता है समाज में
फिर शुरू होता है इक नया आगाज़
जिसमें भूल जाता है वह पाप-पुण्य का भेद
इसके लिए नहीं होता उसे कोई खेद
नहीं कतराता फिर वह अपनों का खून बहाने से
नहीं घबराता वह अपनों की खुशियों में आग लगाने से

क्यों भूल गया है खुद को यूं इंसान
भ्रष्टाचार, लूटपाट, चोरी है समाज में विद्यमान
चारों तरफ फैला है ऐसा कोहराम
जिसने कर दिया है पूरी मानवजाति को हैरान
भूल गया है मानव मनुष्यत्व
कर रहा है वह व्यवहार पशुत्व
क्यों घबराता तनिक नहीं इंसान
इसलिए जा पहुंचता है शमशान

सुधरेगा जग, बदलेगा जग
हो जाए जब सभी एक दूसरे के संग
यदि ध्यान दे हम बच्चो का बचपन
और न समझे इसे हम लड़कपन
बच्चो की सही परवरिश ही हैं हमारा बड़प्पन
तो उठ जाएगा गिरते हुए नैतिक मूल्यों का स्तर
जिसका हो रहा था धीरे-धीरे कत्ल
अच्छाई का फिर से होगा बोलबाला
बुराई का होगा मुंहकाला

-प्रीति चतुर्वेदी