Sunday, May 25, 2025
Homeसाहित्यवो सुर्ख लाल ग़ुलाब: पिंकी दुबे

वो सुर्ख लाल ग़ुलाब: पिंकी दुबे

वो सुर्ख लाल ग़ुलाब
प्रथम मिलन की प्रथम भेंट
संभाल रखा है मैंने,
मेरी डायरी के पन्नो में,
आज भी उनदिनों के कुछ वक्त
छुपा रखा है मैंने,
और कुछ मधुर स्मृतियां भी हैं
सुरक्षित वहीं क्या पता है तुम्हें……
~~~~~~~
पसँद हो या ना हो
उसकी फिर भी ,
कुंडलियां मिलाई जाती हैं
छत्तीस के छत्तीस गुण मिले हैं
बात खुशी की है,
बधाई दी जाती है
फिर एक बेटी आज
ज़बरन,बलि चढ़ाई जाती है
मान,मर्यादा,समाज
और नाक की ख़ातिर
यूँ हीं बार-बार
अनमोल बेटियां गंवाई जाती हैं…!

पिंकी दुबे

Related Articles

Latest News