दो जून की रोटियां- सोनल ओमर

घर छोड़ा गाँव छोड़ा
कमाने निकल पड़े
श्रमिक दो जून की रोटियां

मीलों पैदल चले
दर-दर भटके पर
नहीं मिलीं दो जून की रोटियां

अथक मेहनत करी
मजदूरी कर पायी
इन्होंने दो जून की रोटियां

किसी तरह गुजारा
कर रहे थे कमा-खाकर
वो दो जून की रोटियां

एकदिन देश बंद होने पर
काम मिलना बंद हुआ
अब कैसे मिले दो जून की रोटियां

बोरी-बिस्तर बाँध के वापस
गाँव चले इस उम्मीद से कि
वहाँ मिलेंगी दो जून की रोटियां

चलते-चलते रात हुई
सोचा विश्राम करे
खाकर दो जून की रोटियां

फिर उनकी सुबह न हुई
वे मौत के घर पहुँचे, पटरी पर
पड़ी हुई थी दो जून की रोटियां

-सोनल ओमर
कानपुर, उत्तर प्रदेश