भारत ही नहीं संपूर्ण जगत का वह भाग जहां कोई भी प्राणी अपना जीवन व्यतीत कर रहा है, पौधों के बिना संभव नहीं है। जीव जगत की हर आवश्यकता पौधों पर आश्रित है। पौधों के बिना भूमंडल पर किसी भी जीवन की कामना करना सिर्फ अज्ञानता एवं दिवा स्वप्न ही है। अज्ञानता, भ्रष्टाचार और स्वार्थपरता के कारण बड़ी तेजी के साथ मनुष्यों द्वारा बाग-बगीचे तथा जंगलों का विनाश किया गया है, जिससे प्राकृतिक पर्यावरण का संतुलित रहना असंभव सा प्रतीत होने लगा है। यह मानव जीवन के लिए एक अत्यधिक गंभीर समस्या है। जलवायु परिवर्तन इसीलिए आज हमारे सामने है।
वायुमंडल में नाइट्रोजन 78 प्रतिशत, ऑक्सीजनब21 प्रतिशत, कार्बन डाइऑक्साइड 0.03 प्रतिशत तथा जलवाष्प 1 प्रतिशत उपस्थित रहती हैं। इन गैसों का अनुपात एक निश्चित मात्रा में वायुमंडल में विद्यमान है। वास्तव में यही संतुलित पर्यावरण है। यह जीवन की उत्पत्ति से लेकर उसके संपूर्ण जीवन की पूरी देखभाल करता है।
प्रकृति के नियमानुसार वायुमंडल में विद्यमान गैसें प्रत्येक प्राणी की आवश्यकता के अनुरूप उसे प्राप्त होती रहती हैं। पौधे हानिकारक गैसों तथा सूर्य के प्रकाश जैसे जहर को पीकर हमारे जीवन उपयोगी गैसों एवं वस्तुओं का निर्माण करते हैं और प्राणियों के जीवन के उद्भव और विकास में अपना पूर्ण योगदान कर पर्यावरणीय संतुलन को भी कायम रखते हैं।
यह एक विडंबना है कि हमारी सरकार एवं उसके उच्च पदों पर विराजमान अधिकारी पेड़ों, झाड़ियों एवं लताओं से सुशोभित जंगलों की कटाई करवा कर वहां ईट, पत्थर, सीमेंट और बालू से बने महलों का निर्माण करवाते हैं। इससे हमारे जीवन से जुड़े जंगली पशु-पक्षियों का ह्रास होता है। उन्ही बस्तियों में लगे कल-कारखानों से घातक गैसें निकलकर वायुमंडल में शामिल होती जाती हैं। जहरीले रसायन नदियों के पानी में बहाए जाते हैं। वर्षा के दिनों में जहरीली गैसें पानी के साथ जमीन पर जाती है तो सभी प्राणियों के लिए अत्यंत विनाशकारी साबित होती हैं।
वातावरण में उपस्थित गैसें हमारे जीवन से जुड़कर एक अद्भुत प्रक्रिया के द्वारा हमारी सेवा में लगी रहती हैं। इसी के द्वारा प्राणी जगत की समस्त क्रियाएं सुचारू रूप से संचालित रहती हैं। पृथ्वी पर सभी गैसों की भूमिका बड़ी महत्वपूर्ण है।
प्राकृतिक वातावरण से प्राप्त नाइट्रोजन पौधों को उगाती है। यह भूमि पर उपस्थित खनिज लवण तथा पानी से मिलकर पौधों को निरंतर विकास करती है। उन्हें हरा-भरा और स्वस्थ बनाती है। पौधे कार्बन डाइऑक्साइड लेकर सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में प्रकाश संश्लेषण क्रिया द्वारा ऑक्सीजन का निर्माण करते हैं। यही ऑक्सीजन मनुष्य की श्वसन क्रिया में भाग लेकर समस्त शारीरिक क्रिया विधि का संचालन करती है।
ऑक्सीजन जीवनोपयोगी आग उत्पन्न करती है। ऑक्जसीन ही तो कार्बोहाइड्रेट का जारण कर शरीर के लिए ऊर्जा का उत्पादन करती है। ऑक्सीजन के बिना जल की प्राप्ति नहीं हो सकती, और जल के बिना जीवन संभव नहीं है।
मनुष्य द्वारा त्याज्य कार्बन डाइऑक्साइड पौधों के श्वसन में काम आती है। इसके बिना पौधों का जीवन सुरक्षित नहीं है। जीव – जंतुओं एवं पेड़-पौधों के मृत शरीर से नाइट्रोजन उत्पन्न होकर वायुमंडल तथा भूमि में मिल जाती है, जो पौधों के उपयोग की वस्तु है। नाइट्रोजन ही शरीर में प्रोटीन का निर्माण करती है और प्रोटीन जीव द्रव्य के लिए आवश्यक है। सभी प्राणियों के लिए आवश्यक जीवन तत्व डीएनए और आरएनए भी प्रोटीन से निर्मित हैं।
समस्त जीव जगत पौधों पर निर्भर है। जंगलों और पर्वतों से ही नदियों का उद्भव होता है। नदियों से जल प्राप्त होता है। मानव तथा पशुओं की सभी आवश्यकता पौधों से ही प्राप्त होती हैं। जीवन रक्षक दवाइयां तो दूर अंतिम दाह संस्कार की लकड़ी भी तो पौधों से मिलती है। पर्वत एवं जंगल मानसूनी हवाओं को रोककर वर्षा कराते हैं। वर्षा का पानी आधुनिक विज्ञान से भी संभव नहीं है हमारे जीने के लिए शुद्ध हवा सिर्फ हरे पौधों से ही प्राप्त हो सकती है। पौधे भूमि संरक्षण में महान योगदान कर हमारी कृषि का विस्तार करते हैं। पर्यावरण की सुरक्षा का एकमात्र साधन पौधे हैं अतः आज के समय में हरे पौधों की उपयोगिता बहुत अधिक बढ़ गई है।
वास्तव में देखा जाए तो पौधे हमारे जीवन की अमूल्य निधि है जो प्रकृति के द्वारा हमें मुफ्त में ही प्राप्त है। ये पुत्र से भी कई गुना बढ़कर हमारी सेवा में जीवन पर्यंत लगे रहते हैं। जीवन के लिए आवश्यक रोटी, कपड़ा और मकान आखिर पौधों के बल पर ही तो प्राप्त होता है।हमारा संपूर्ण जीवन पौधों पर निर्भर है फिर भी हम उनका जीवन समाप्त करने पर तुले रहते हैं।
हमारी सरकार द्वारा वन संरक्षण अधिनियम 1980 के अनुसार वनों की कटाई पर रोक लगाने के बावजूद भी उनका संरक्षण करने में विफल रही है। इसका उदाहरण है गढ़वाल मंडल के हिमालय की तराई में टिहरी बांध परियोजना जिसका वैज्ञानिकों तथा बुद्धिजीवियों के विरोध के बावजूद निर्माण किया गया। इस परियोजना के द्वारा 99 वनस्पति परिवारों से संबंधित 462 पादप प्रजातियां नष्ट हो गईं। जिसमें कुछ का औषधि तथा आर्थिक दृष्टि से बहुत महत्व है।
हमारी सरकार तो सिर्फ कानून बनाकर अपनी जिम्मेदारी पूरी करना चाहती है जबकि उसके ही आला अफ्सर अपने कानून की धज्जियां उड़ाते हुए ऊपरी कमाई के लिए हरियाली से परिपूर्ण वनों की कटाई अनावश्यक रूप से कराते रहते हैं। फिर भी हमारे देश के नागरिक इसके प्रति जागरूक होकर मध्यकालीन समय से ही सक्रिय भूमिका निभाते आ रहे हैं।
विगत वर्षों में सुंदरलाल बहुगुणा के नेतृत्व में चलाया गया चिपको आंदोलन वास्तव में हमारी जागरूकता का परिचय देता है। इस आंदोलन में लोग पेड़ों से चिपक कर उनके बदले अपनी बलि देने के लिए तैयार हो जाते थे। वैसे भी राजस्थान में पेड़ों की सुरक्षा के खातिर मुगल शासन काल में न जाने कितनों की बलि चढ़ाई जा चुकी है।
साधु-संत भी पेड़ों की सुरक्षा का उपदेश प्रारंभिक काल से ही देते रहे हैं। पौधों की उपयोगिता मानव जीवन के पल-पल से जुड़ी है। अतः हमारा नैतिक कर्तव्य एवं दायित्व होना चाहिए कि पौधों की उत्पत्ति और उनका संरक्षण ज्यादा न सही तो कम से कम पुत्र के समान तो करना ही चाहिए। पौधों के संरक्षण से ही पर्यावरण सुरक्षित रह सकेगा। जिसके बल पर हमारा जीवन और समस्त ब्रह्मांड सुरक्षित है।
-रामसेवक वर्मा
विवेकानंद नगर, पुखरायां,
कानपुर देहात, उत्तर प्रदेश