विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भारत का रूख स्पष्ट करते हुये कहा है कि चीन के साथ सीमा विवाद का समाधान सभी समझौतों एवं सहमतियों का सम्मान करते हुए और एकतरफा ढंग से यथास्थिति में बदलाव का प्रयास किये बिना ही प्रतिपादित किया जाना चाहिए।
जयशंकर ने लद्दाख की स्थिति को 1962 के संघर्ष के बाद सबसे गंभीर बताया और कहा कि दोनों पक्षों की ओर से वास्तविक नियंत्रण रेखा पर अभी तैनात सुरक्षा बलों की संख्या भी अभूतपूर्व है। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि सभी सीमा स्थितियों का समाधान कूटनीति के जरिये हुआ।
अपनी पुस्तक द इंडिया वे: स्ट्रैटजिज फार एन अंसर्टेन वल्र्ड के लोकार्पण से पहले रेडिफ डॉट काम को दिये साक्षात्कार में विदेश मंत्री ने कहा कि जैसा कि आप जानते हैं, हम चीन के साथ राजनयिक और सैन्य दोनों माध्यमों से बातचीत कर रहे हैं। वास्तव में दोनों साथ चल रहे हैं।
उन्होंने कहा कि लेकिन जब बात समाधान निकालने की है, तब यह सभी समझौतों एवं सहमतियों का सम्मान करके प्रतिपादित किया जाना चाहिए। और एकतरफा ढंग से यथास्थिति में बदलाव का प्रयास नहीं होना चाहिए।
गौरतलब है कि भारत जोर दे रहा है कि चीन के साथ सीमा गतिरोध का समाधान दोनों देशों के बीच सीमा प्रबंधन के लिये वर्तमान समझौतों और प्रोटोकाल के अनुरूप निकाला जाना चाहिए। यह पूछे जाने पर कि उन्होंने सीमा विवाद से पहले लिखी अपनी पुस्तक में भारत और चीन के भविष्य का चित्रण कैसे किया है, विदेश मंत्री ने कहा कि यह दोनों के लिये अत्यंत महत्वपूर्र्ण संबंध है और इसके लिये रणनीति और दृष्टि की जरूरत है।