Tuesday, November 26, 2024
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भारतीय संस्कृति और परंपरा का लोक पर्व कर्मा-धर्मा: स्नेहा किरण

प्रकृति पर्व के नाम से प्रसिद्ध व लोकप्रिय पर्व, भारतीय संस्कृति और परंपरा का लोक पर्व कर्मा-धर्मा का त्यौहार हर बहन अपनी भाई की सुख समृद्धि की कामना के लिए मनाती है। यह त्यौहार हर वर्ष भाद्र मास शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाया जाता है।

भाई की लंबी उम्र की कामना के लिए बहने अपने घर के बाहर एक तालाब बनाती हैं और उसे अच्छी तरह फल-फूल से प्राकृतिक सौंदर्य का रूप देने के लिए सजाती हैं। इसके उपरांत संध्या में नए-नए परिधानों में सज धज कर देवाधिदेव महादेव माता पार्वती और प्रथम पूज्य सिद्धिविनायक की पूजा अर्चना करती हैं। इसके बाद तालाब के चारों ओर घूम-घूम कर कर्मा-धर्मा का गीत गाती हैं।

कर्मा-धर्मा पर्व मुख्य रूप से भारत में झारखण्ड, बिहार ओड़िशा, पश्चिम बंगाल और छत्तीसगढ़ का एक प्रमुख त्यौहार है। मुख्य रूप से यह त्यौहार भादो मास की एकादशी के दिन और कुछेक स्थानों पर उसी के आसपास मनाया जाता है। इस मौके पर लोग प्रकृति की पूजा कर अच्छे फसल की कामना करते हैं। कर्मा पर झारखंड के लोग ढोल और मांदर की थाप पर झूमते-गाते हैं। कर्मा को आदिवासी संस्कृति का प्रतीक भी माना जाता है।

कर्मा-धर्मा पर्व के पीछे की पौराणिक कथा तो यही प्रचलित है कि कर्मा और धर्मा नामक दो भाइयों ने अपनी बहन की रक्षा के लिए जान को दांव पर लगा दिया था। दोनों भाई गरीब थे और उनकी बहन भगवान से हमेशा सुख-समृद्धि की कामना करते हुए तप करती थी।

बहन के तप के बल पर ही दोनों भाइयों के घर में सुख-समृद्धि आई थी। इस एहसान के फलस्‍वरूप दोनों भाइयों ने दुश्मनों से बहन की रक्षा करने के लिए जान तक गंवा दी थी। इसी के बाद से इस पर्व को मनाने की परंपरा शुरू हुई।

इसके अलावा इस पर्व से जुड़ी एक और कहानी है। एक बार कर्मा परदेस गया और वहीं जाकर व्यापार में रम गया। बहुत दिनों बाद जब वह घर लौटा तो उसने देखा कि उसका छोटा भाई धर्मा करमडाली की पूजा में लीन है। धर्मा ने बड़े भाई के लौटने पर कोई खुशी नहीं जताई और पूजा में ही लीन रहा। इस पर कर्मा गुस्‍सा हो गया और पूजा के सामान को फेंककर झगड़ा करने लगा। धर्मा चुपचाप सहता रहा। वक्त के साथ कर्मा की सुख-समृद्धि खत्म हो गई।

आखिरकार धर्मा को दया आ गई और उसने अपनी बहन के साथ देवता से प्रार्थना की कि भाई को क्षमा कर दिया जाए। एक रात कर्मा को देवता ने स्वप्न में करमडाली की पूजा करने को कहा। कर्मा ने वहीं किया और सुख-समृद्धि लौट आई।

यह दिन इनके लिए प्रकृति की पूजा का है। ऐसे में ये सभी उल्लास से भरे होते हैं। परम्परा के अनुसार खेतों में बोई गई फसलें बर्बाद न हों, इसलिए प्रकृति की पूजा की जाती है। इस मौके पर एक बर्तन में बालू भरकर उसे बहुत ही कलात्मक तरीके से सजाया जाता है।

पर्व शुरू होने के कुछ दिनों पहले उसमें जौ डाल दिए जाते हैं, इसे ‘जावा’ कहा जाता है। यही जावा बहनें अपने बालों में गूंथकर झूमती-नाचती हैं। बहनें अपने भाइयों की सलामती के लिए इस दिन व्रत रखती हैं। इनके भाई ‘करम’ वृक्ष की डाल लेकर घर के आंगन या खेतों में गाड़ते हैं। इसे वे प्रकृति के आराध्य देव मानकर पूजा करते हैं। पूजा समाप्त होने के बाद वे इस डाल को पूरे धार्मिक रीति‍ से तालाब, पोखर, नदी आदि में विसर्जित कर देते हैं।

कर्मा की मनौती मानने वाले दिन भर उपवास रख कर अपने सगे-सम्बंधियों व अड़ोस पड़ोसियों को निमंत्रण देता है तथा शाम को कर्मा वृक्ष की पूजा कर टँगिये कुल्हाड़ी के एक ही वार से कर्मा वृक्ष के डाल को काटा दिया जाता है और उसे ज़मीन पर गिरने नहीं दिया जाता। तदोपरांत उस डाल को अखरा में गाड़कर स्त्री-पुरुष बच्चे रात भर नृत्य करते हुए उत्सव मानते हैं और सुबह पास के किसी नदी में विसर्जित कर दिया जाता हैं। इस अवसर पर एक विशेष कर्मा गीत भी गाये जाते हैं-

‘उठ उठ करमसेनी, पाही गिस विहान हो
चल चल जाबो अब गंगा असनांद हो’

कर्मा पूजा पर्व आदिवासी समाज का भी एक प्रचलित लोक पर्व है। इस त्यौहार में एक विशेष नृत्य किया जाता है जिसे कर्मा नृत्य कहते हैं

इस अवसर पर श्रद्धालु उपवास के पश्चात करमवृक्ष का या उसके शाखा को घर के आंगन में रोपित करते है और दूसरे दिन कुल देवी-देवता को नवान्न देकर ही उसका उपभोग शुरू होता है।

कर्मा नृत्य को नई फ़सल आने की खुशी में लोग नाच-गाकर मनाते है। कई वर्षों से कर्मा नृत्य छत्तीसगढ़ और झारखण्ड की लोक-संस्कृति का पर्याय भी है। छत्तीसगढ़ और झारखण्ड के आदिवासी और ग़ैर-आदिवासी सभी इसे लोक मांगलिक-नृत्य मानते हैं।

कर्मा नृत्य, सतपुड़ा और विंध्य की पर्वत श्रेणियों के बीच सुदूर गावों में विशेष रूप से प्रचलित है। शहडोल, मंडला के गोंड और बैगा एवं बालाघाट और सिवनी के कोरकू तथा परधान जातियाँ कर्मा के ही कई रूपों को आधार बना कर नाचती हैं। बैगा कर्मा, गोंड़ कर्मा और भुंइयाँ को कर्मा आदिवासी नृत्य माना जाता है।

प्रकृति पर्व के नाम से लोकप्रिय कर्मा पर्व भाई-बहन के स्नेह और प्रेम की निशानी के रूप में लगभग तीन दिनों तक मनाया जाता है।

स्नेहा किरण
लेखिका व सामाजिक कार्यकर्ता

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