इस तरह की घटनाएं बेचैन कर जाती है। आज फिर स्तब्ध हूँ, क्योंकि 29 सितम्बर को केवल दिल्ली में हाथरस की दुष्कर्म पीड़िता ने दम नहीं तोड़ा है, उसके साथ मरी है मानवता, मरा है उन हज़ारों बेटियों का आत्मविश्वास जो स्वछंदता से उन्मुक्त गगन में उड़ना चाहती हैं, मरा है लाखों माँ-बाप का विश्वास।
जो अपनी फूल सी बिटिया को खुले आसमान में उड़ने की इजाजत देते हैं, लेकिन नहीं जानते कि उसी आसमान में कई नरभक्षी भी घात लगाए बैठे हैं।
14 सितंबर को पीड़िता के साथ चार नरभक्षी दरिंदों ने हैवानियत की थी। वो अपनी आपबीती किसी को बता ना पाए, इसलिए उसकी जुबान काट दी।
ऐसी हैवानियत के बाद वो अपने घर भी ना पहुंच पाए, इसलिए उसकी रीढ़ की हड्डी तक तोड़ दी। ऐसी इंसानियत को तार-तार कर देने वाली वीभत्सता के बाद उसे जेएन मेडिकल कॉलेज में एडमिट कराया गया था।
वारदात के एक हफ्ते बाद तक बेहोश रही पीड़िता ने होश में आने के बाद भी इशारों में ही अपना बयान दर्ज करवाया था। पर एक हफ्ते बाद दिल्ली के अस्पताल में देश की एक बेटी जिंदगी की जंग हार गई।
यह घटना कानून व्यवस्था पर सीधा सीधा एक प्रश्न चिन्ह खड़ा करती है और यह घटनाएं तमाम उन लोगों पर भी प्रश्न उठाती हैं जो अपनी गंदी राजनीतिक मानसिकता के कारण गलत फैसलों का विरोध नहीं कर सकती।
आज के समय में मीडिया इतनी बिक चुकी है कि वह लगातार रिया चक्रवर्ती, सुशांत सिंह राजपूत को दिखाने में तो व्यस्त है, परंतु सरकार में कानून व्यवस्था किस तरह चरमरा रही है उसे दिखाने के लिए कोई मीडिया कर्मी नहीं।
कोई मीडिया चैनल इन बातों की आवाज नहीं उठाता। आखिर क्यों 8 दिन में एफआईआर दर्ज होती है? एक बेटी के साथ बलात्कार किया जाता है।
उसके साथ यह दुष्कर्म कर उसकी हड्डियां तोड़ दी जाती हैं। वह बेचारी जिंदगी की जंग लड़ते हुए हार जाती है। फिर भी इंसाफ नहीं मिलता। कोई मीडिया चैनल इस चरमराई हुई कानून व्यवस्था के ऊपर एक शब्द नहीं कहता।
आखिर क्यों 8 दिन लगे एफआईआर दर्ज होने में? और इंसाफ मिलने में ना जाने कितना और समय लगेगा? पता नहीं देश की इस बेटी को इंसाफ मिलेगा भी या नहीं! क्योंकि देश में कोई भी घटना घटते ही जाति और मज़हब का रूप ले लेती है।
अब इसमें भी राजनीति घोल दी गई कि वो हिन्दू नहीं थी, मुस्लिम नही थी, दलित थी। इन सब से ऊपर उठाकर आखिर कब बलात्कार जैसे दुष्कर्म की कठोर से कठोर सजाएं तय की जाएंगी? और कब इनका सख्ती से पालन किया जाएगा?
“किसी मासूम की आबरू लूटी है फिर से!
खूब बिकेंगी मोमबत्तियाँ आज शहर में!”
देश की राजनीतिक व्यवस्था पर सटीक व्यंग्य करती है ये पंक्तियां। जब तक कोई सख्त और अविलंब कार्यवाही नहीं होगी कुछ नहीं होगा। फ़िर से कोई लाडो, फ़िर से कोई निर्भया कहीं किसी के हाथों नोची खसोटी जाएगी। किसी गली, खेत खलिहानों में, नगर गांव बस्ती में।
कुचलेगा कोई किसी अबोध का चेहरा, ताकि मिटा सके अपनी पहचान करने वाली का अक्स! मिटा सके अपनी हवस, मिटा सके अपनी टपकती जीभ से लार का स्वाद। सब यूं ही चलता रहेगा, देश, संसद, कानून, आरोप प्रत्यारोप और मरती रहेंगी देश की बेटियां।
बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ और बोटियां नुचवाओ… क्या यही देश का नारा बनकर रह जायेगा? अपनी बेटी के साथ फ़ोटो लगा कर लोग बेटी दिवस मना रहे है, लेकिन देश की इन बेटियो का क्या जिसके साथ इतनी घिनौनी घटनाये घट रही हैं? मेरी देश की जनता से, देश की माँओं से निवेदन है कि वे अपने बेटों को सही सीख दे, देश की हर औरत का सम्मान करना सिखाएं। ताकि आप अपनी बेटियों के साथ साथ भारत की हर बेटी को सुरक्षित कर सके और फिर बेटी दिवस मनाइये।
“असुरक्षित महसूस कर रही है आज देश की हर नारी।
आखिर कब तक यूँ ही सोती रहेगी सियासत हमारी?
क्यों नहीं उठाते ठोस कदम ऐसी क्या है लाचारी?
क्या ऐसे ही दहशत में जीती रहेंगी बहू-बेटियां सारी?”
सोनल ओमर
कानपुर, उत्तर प्रदेश