मध्य प्रदेश की मध्य क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी अपने कार्मिकों का सरकारी कंपनी द्वारा कराए जाने समूह बीमा खत्म कर निजी कंपनी को सौंपने की तैयारी कर रही है।
हालांकि इससे पहले कंपनी के मुख्य महाप्रबंधक मानव संसाधन एवं प्रशासन कार्यालय ने पत्र लिखकर सभी कर्मचारी संगठनों के पदाधिकारियों को बुलाया और एक बैठक का आयोजन कर उनसे सुझाव मांगे गए। प्राप्त सुझावों पर कंपनी प्रबंधन ने विचार करने की बात भी कही है।
बताया जा रहा है कि कंपनी प्रबंधन ने एलआईसी द्वारा किये जा रहे समूह बीमा सह बचत योजनाओं को कार्मिकों के लिए लाभकारी नहीं होने की बात भी कही है, इससे ये स्पष्ट है कि कंपनी प्रबंधन इन योजनाओं का काम निजी कंपनी को सौंपने की तैयारी कर चुका है।
बैठक में शामिल हुए मप्रविमं तकनीकी कर्मचारी संघ के प्रांतीय महासचिव हरेन्द्र श्रीवास्तव का कहना है कि उन्होंने अपनी ओर से कंपनी प्रबंधन को सुझाव दिया है कि सभी कर्मचारियों का कम से कम 20 लाख रुपये का बीमा होना चाहिए। साथ ही कर्मचारियों को क्लैम मिलने में कोई परेशानी नहीं आनी चाहिए।
इसमें गौर करने वाली बात है कि निजी कंपनियों द्वारा किया जाने वाला समूह बीमा विद्युत कर्मचारियों को कितना लाभ दे पाता है, ये तो आने वाला समय ही बता पायेगा। क्योंकि उत्तर प्रदेश में बिजली कर्मचारियों का करीब 2631 करोड़ रुपये का प्राविडेंट फंड निजी कंपनी डीएचएफसीएल में जमा कराया गया था, जो कंपनी के दिवालिया होने के बाद डूब गया।
उल्लेखनीय है कि उत्तर प्रदेश की अखिलेश यादव सरकार के दौरान बिजली कर्मियों के पीएफ को निजी कंपनी में लगाने का ये फैसला 2014 में लिया गया था। इसी साल मामले में खुलासा हुआ कि मार्च 2017 से दिसंबर 2018 तक 2631.20 करोड़ रुपये के पीएफ़ का निवेश निजी कंपनी डीएचएफएल में किया गया था। इसके बाद डीएचएफएल कंपनी के दिवालिया हो गई। जिसके बाद विद्युत कर्मचारियों की गाढ़ी कमाई का हजारों करोड़ रुपये अभी भी फंसा हुआ है।