होली आने को है, आने को क्या लगभग आ ही गयी है, होली के आते ही वह रंगों से भरे रंग बिरंगे सपने आँखों की पलकों से होते हुए आँखों के नूर में समाने लगते है और बीती हई होली की शरारतमयी मधुर यादें दिल में पनप उठती है।
जिस वजह से दिल भी यादों की याद की लहरों में गोते लगाते हुए अपने आप में ही खो-सा जाता है और फिर होली आने को है, तो लाजमी है कि फिर वही यादों का सिलसिला, फिर से तड़प उठेगा और बीती हुई बातों और यादों के सहारे पिछले वर्ष के बाकी रहे कुछ अरमानों को इस साल भुनाने की मनगढ़ंत योजना पर आंतरिक मंथन होना भी लाजमी है, कुछ अंजाम तक पहुँचेगे तो कुछ अंजानों तक क्योंकि होली है, भाई यह होली है, रंगो की लीला है।
होली हो और गुलाल ना उड़ाया जाए, ऐसा प्रतीत होता है कि होली और गुलाल एक दूसरे के पूरक हो, होली शब्द ही गुलाल की उपयोगिता को दर्शा देता है, जहाँ होली में गुलाल हो और गुलाब ना हो तो होली के रंग में भंग सा लगने लगता है और जब गुलाब हो तो गुलाब (नायिका) को गुलाल मलने का स्वपन नायक के दिलों की धड़कन को सामान्य से अधिक कर देता है।
नायक अपनी नायिका को होली के खास मौके पर अपने गुलाब को गुलाल से रंगने को बेताब-सा रहता, उसकी यह बैचेनी उसके आभामंडल पर प्रकाशमान नजर आती है, वह स्वप्न में अपनी नायिका के अनुपम सौंदर्य के साथ गालों पर गिरती बालों की सुरझी हुई लटों एवं माथे पर रखी एक बिंदी और उसके होठों पर वह घायल कर देनी वाली मधुरमयी मुस्कुराहट के बीच उसके दोनों गालों पर गुलाल से भरे हाथों उन गुलाबी गालों को रंग डालना चाहता है। जैसे ही उन गुलाब की पंखुड़ियों से गालों को छुआ तो, नींद टूटी और याद आया कि यह तो हम अपने सपनों की पराकाष्ठा वाली दुनिया के भृमण पर निकले हुए थे। खैर कोई नहीं सपना भी तो अपना ही है।
जब स्वप्न की बात नायिका के कानों तक लगी तो, पहले नायिका की चमचमाती बत्तीसी खिल उठी और नायिका अपने अलग ही दुनिया में विचरण करने लगी, कुछ समय बाद जब नायिका ने देखा कि नायक के चेहरे पर क्रोध रूपी प्यार आ रहा है, तो नायिका ने आने वाली होली पर इस स्वप्न को पूरा करने का एक हौसला दिया।
जिससे नायक का मन एक बार फिर चहक उठा, नायिका के मन में भी एक अलग सी हलचल होने लगी थी, वह भी अपने नायक के हाथों रंगना चाहती थी, पर शायद यह इतना आसांन होने वाला कहा था। नायक फिर अपने सपनों में खोकर होली के आने का इंतजार करने लगता है कि कब होली आती है और कब वह अपनी प्रेमिका के गालों पर उस अधूरे सपने को पूर्ण करते हुए दोनों हाथों से गुलाल लगायें।
गुलाब को गुलाल कुछ ऐसे लगाना है कि गुलाब के गाल गुलाबी हो जाये और गुलाब की गुलाबी मुसकुराहट को कोई दूजा समझ ना पाए।
जब होली का सुनहरा मौका आता है तो दोनों तरफ हलचल मची होती है और जब वह दोनों एक दूसरे के सामने होते है, तो दोनों की आँखों के नूर एक दूसरे से टकराकर एक-दूसरे पर ही टिक जाते है, मानों की उस होलीमहोत्सव में यही दोनों हो पर सभी अपनी मस्ती में मस्त एक-दूसरे को रंग लगा रहे थे कि तभी अचानक नायिका के ऊपर किसी ने बाल्टी भरकर पानी डाल दिया और वह जल्दी से नायक को गुलाल लगा, हैप्पी होली बोल अपनी सखियों संग दौड़ पड़ी।
अब बारी नायिका को रंगने की थी, सो वह इतना आसान नही था, जैसे-तैसे नायिका को सखियों से अलग किया और नायिका को रंगने के लिए गुलाल लिया ही था कि वह गुलाल को नायक के ऊपर ही उड़ेल फिर चल दिए। इस बार नायिका ने बड़े ही प्रेम से अपने दोनों गालों को अपने नायक को सौप दिया, मानों कह दिया हो कि लो जितना मर्जी उतना रंगलगा लो। नायक ने नायिका के गालों पर गुलाल मल कर अपने अधूरे सपने को पूर्ण किया और नायक की नायिका को गुलाल लगाने की जिद पूर्ण हुई।
मनु शर्मा खोपरा
अशोकनगर