एमपी में विद्युत कंपनी प्रबंधन की सोच: 60 हजार वेतन वालों को 3 लाख और 8 हजार वालों को कुछ नहीं

मध्य प्रदेश की पूर्व क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी का प्रबंधन इतना प्रतिभाशाली और समझदार है कि उसके निर्णय मिसाल बनते जा रहे हैं। कंपनी प्रबंधन 60 हजार मासिक वेतन पाने वाले नियमित लाइन कर्मियों को कोरोना संक्रमण के उपचार के लिये 3 लाख रुपये का चिकित्सा अग्रिम देने की घोषणा कर वाहवाही लूट रहा है।

बेशक कोरोना संक्रमण से उत्पन्न इस कठिन समय में हर कर्मचारी को आर्थिक संबल की आवश्यकता है और सभी के लिये कंपनी प्रबंधन को न्यायपूर्ण योजनायें बनानी चाहिए। कंपनी प्रबंधन अपने नियमित कर्मियों के लिये तो सोच रहा है, लेकिन नियमित कर्मियों के विकल्प के रूप में कार्य कर रहे संविदा और आउट सोर्स कर्मियों के लिये कंपनी प्रबंधन के पास कोई योजना नहीं है।

जबकि सबसे ज्यादा शोषित और आर्थिक रूप से दयनीय स्थिति में यही कर्मचारी वर्ग हैं। हालांकि विद्युत कंपनी प्रबंधन ने संविदा कर्मियों को भी 70 हजार रुपये चिकित्सा अग्रिम देने की घोषणा की है। लेकिन सोचने वाली बात है कि जिस बीमारी के उपचार में साढ़े तीन लाख से ज्यादा खर्च होना तय है, उसके लिये सिर्फ 70 हजार रुपये चिकित्सा अग्रिम की स्वीकृति दी गई है, लेकिन कंपनी के उच्च शिक्षित और समझदार आला अधिकारियों ने ये नहीं सोचा कि संविदा कर्मी बाकी के रुपयों की व्यवस्था कैसे करेगा।

वहीं विद्युत कंपनी में सबसे ज्यादा जरूरतमंद और शोषित कोई है तो वो हैं, आउट सोर्स कर्मी जिन्हें हर ओर से मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। लेकिन असंवेदनशील हो चुके कंपनी प्रबंधन ने जैसे इस ओर से आँखें ही मंूद ली हैं। आउट सोर्स कर्मियों का ठेकेदार तो शोषण कर ही रहे हैं, कंपनी प्रबंधन से भी उन्हें कोई राहत नहीं मिलती दिख रही है।

कंपनी में नियमित कर्मियों के विकल्प के रूप में कार्य कर रहे आउट सोर्स कर्मियों से सौतेला व्यवहार करने वाले विद्युत अधिकारी नियम विरुद्ध पोल पर चढ़ाकर करंट कार्य करवाते हैं, साथ ही इन कर्मियों से राजस्व वसूली, मेंटेनेंस और उपभोक्ताओं की शिकायतों का निराकरण करने के लिये जोखिम वाले कन्टेनमेंट जोन में भी भेज देते हैं। जिससे इनके कोरोना संक्रमित होने की संभावना ज्यादा होती है।

इसके बावजूद न तो ठेकेदार और न ही कंपनी प्रबंधन इनके बारे में मानवीय सोच रखता है और न ही इन्हें किसी प्रकार की सुविधा दी जा रही है, जबकि ये नियमित कर्मियों की भांति ही सभी प्रकार के कार्य कर रहे हैं। मात्र 8 से 10 हजार रुपये मासिक वेतन पाने वाले ये आउट सोर्स कर्मी अब भगवान भरोसे छोड़ दिये गये हैं। इन आउट सोर्स कर्मियों के लिये न तो ठेकेदार ने और न ही विद्युत कंपनी प्रबंधन ने कोई घोषणा कर राहत प्रदान की है। न ही इन आउट सोर्स कर्मियों को किसी प्रकार के बीमा की सुविधा दी गई, जिससे बीमार होने पर पर ये अपना उपचार करा सकें।

मप्रविमं तकनीकी कर्मचारी संघ के प्रांतीय महासचिव हरेन्द्र श्रीवास्तव का कहना है कि इस समय सभी कर्मियों को आर्थिक रूप से राहत की जरूरत है। कंपनी के संविदा और आउट सोर्स कर्मी, जिन्हें बहुत कम वेतन मिलता है, उन्हें भी उचित चिकित्सा अग्रिम का लाभ दिया जाना चाहिए। साथ ही सभी वर्ग के जमीनी कर्मियों को कोरोना संक्रमण से बचाने के लिये एक दिन छोड़ एक दिन काम पर बुलाना चाहिए। अगर कर्मी एक साथ बीमार हो गये तो प्रदेश की विद्युत व्यवस्था पूरी तरह से ठप हो जायेगी।