लोकराग विशेष: आज के समय में बिजली मूलभूत आवश्यकताओं में पूरी तरह शुमार हो चुकी है। आज बिना बिजली के न तो औद्योगिक विकास की बात सोची जा सकती है और न ही समाज की उन्नति का दावा किया जा सकता है। लेकिन ताज्जुब की बात है कि आज के समय के सबसे महत्वपूर्ण सेक्टर के प्रति मध्य प्रदेश सरकार की उदासीनता और अनदेखी उसे गर्त की ओर लेकर जा रही है।
वहीं विभिन्न विद्युत कंपनियों के प्रबंधनों की अदूरदर्शिता भी इसे गर्त की ओर धकेल रही है। अनुभवी मैदानी अधिकारियों और कर्मचारियों के लाभदायक सुझावों को दरकिनार कर कंपनी प्रबंधन प्रदेश के विद्युत तंत्र को छिन्न-भिन्न करने में जुटा हुआ है। ऐसा प्रतीत हो रहा है कि कंपनी प्रबंधन और प्रदेश सरकार की ये सारी कवायदें विद्युत कंपनियों को निजीकरण की ओर ले जाने के लिये की जा रही है।
हालांकि वर्तमान परिस्थितियों को देखें तो एक बात स्पष्ट है कि कोरोना महामारी से उपजे संकट के बाद भी विद्युत सेक्टर की अनदेखी घातक साबित हो सकती है। आज घरों से लेकर अस्पतालों तक और उद्योग से लेकर रेलों के संचालन तक बिना बिजली के आगे बढऩे की बात सोची भी नहीं जा सकती, लेकिन सबसे ज्यादा उपेक्षा इसी बिजली सेक्टर की हो रही है।
लगातार अनदेखी का नतीजा है कि आज बिजली कंपनियों के पास व्यवस्थाओं को संभालने के लिये पर्याप्त अनुभवी जमीनी अधिकारी और कर्मचारी तक नहीं हैं। जमीनी स्तर पर अनुभवी कर्मचारियों की इतनी कमी है कि कोरोना संक्रमित होने के बावजूद अधिकारी उन्हें ड्यूटी करने पर मजबूर कर रहे हैं। वहीं जमीनी अधिकारियों पर भी इतना दबाव है कि वे अपने ऊपर होने वाली कार्यवाहियों से बचने के लिये नियमों की अनदेखी कर रहे हैं।
इन सबके पीछे सबसे बड़ा कारण यही है कि आज कंपनियों में अधिकांश अधिकारी संविदा नियुक्ति पर तैनात हैं, वहीं लगभग 90 प्रतिशत जमीनी कर्मचारी संविदा और आउटसोर्स से नियुक्ति किये गये हैं। जिस कारण उनके मन में हमेशा नौकरी जाने का भय बना रहता है और वे पूरे मनोयोग से कार्य नहीं कर पा रहे हैं। लेकिन इन सब में सबसे ज्यादा नुकसान बिजली सेक्टर का हो रहा है। जिस तरह के हालात बन रहे हैं, उससे तो ऐसा ही प्रतीत हो रहा है कि मध्य प्रदेश का विद्युत तंत्र किसी भी दिन धराशायी हो सकता है और पूरा प्रदेश अंधेरे में गुम हो सकता है।