वो जब हँसता था तो
मुझको उसके दाँत बहुत अच्छे लगते थे
और फिर मुझे बशीर बद्र का
वो शेर याद आता था
उजले उजले फूल खिले हैं
बिल्कुल जैसे तुम हँसते हो
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मुझे मेरे मायके की वो फूलों की क्यारियाँ
फिर याद आने लगती थी
जिसमें बेली के फूल खिला करते थे
छोटे छोटे गठीले बेहद सुंदर और खुशबूदार
तुम्हारी मोहक मुस्कान की तरह
सुबह-सुबह उन फूलों के बदन पे
मोती जैसे ओस की बून्द सजी रहती थी
जो कि और भी खूबसूरत लगते थे
बिल्कुल तुम्हारी गीली हँसी की तरह
पर अब लगता है कि
वो ओस की बून्द नहीं होंगी
वो किसी प्रेमिका के आँसू होंगे
जो बहाये होंगे उसने रातभर
अपने महबूब की जुदाई में
खैर तुम हमेशा हँसते रहना
मुझे तुम्हारी हँसी बेहद अज़ीज़ है
रूची शाही