सनातन संस्कृति में एकादशी व्रत का विशेष महत्व है। पंचांग के अनुसार यूं तो वर्ष में 24 एकादशियां आती हैं और हर एकादशी का अपना एक विशेष महत्व है, लेकिन ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को अत्यंत फलदायी माना जाता है।
ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को निर्जला एकादशी के नाम से जाना जाता है और इस एकादशी के व्रत को सबसे कठिन माना जाता है। निर्जला एकादशी के दिन व्रती न तो जल की एक बूंद और न ही अन्न का एक दाना ग्रहण करता है। इस व्रत मे पानी का पीना वर्जित है, इसलिये इस निर्जला एकादशी कहते है। इस कठिन व्रत को करने के कई नियम हैं, जिनका पालन जरूर करना चाहिए।
पंचांग के अनुसार एकादशी तिथि 20 जून की शाम 4 बजे से ही शुरू हो जाएगी, लेकिन हिंदू मान्यताओं के अनुसार उदया तिथि को व्रत रखना उत्तम एवं शुभ फलदायी होता है। इसलिए निर्जला एकादशी का व्रत 21 जून को ही रखा जाएगा, हालांकि एकादशी 21 जून को दोपहर 1:30 बजे तक रहेगी, इसलिए 20 जून को भी उपवास किया जा सकता है, लेकिन व्रत का पारण 22 जून को ही किया जाएगा।
निर्जला एकादशी के दिन निर्जल व्रत करते हुए शेषशायी रूप मे भगवान विष्णु की अराधना का विशेष महत्व है। इस दिन ॐ नमो भगवते वासुदेवाय का जप करके गोदान, वस्त्र दान, छत्र, फल आदि का दान करना चाहिये। निर्जला एकादशी का व्रत भगवान विष्णु के निमित्त किया जाता है। शास्त्रों के अनुसार ये व्रत मोक्ष प्रदान करता है और जन्म-जन्मांतर के बंधन से मुक्ति दिलाता है।