कोरा कुँवारा सा स्वप्न: रूची शाही

बंद कमरे के सन्नाटे में
बिस्तर पर लेटे-लेटे
वो जो आँखो के कोने से
बहता है एक तन्हा आँसू

वो बस आँसू नही होता
उसमें छिपा होता है
मन गहरा अवसाद
अथाह दर्द का समन्दर

वो बस आँसू नही होता
उसमें छिपी होती
हजारों हिचकीयों का स्वर
फूट-फूट कर रोयी गई
दर्द की सम्वेदना

वो बस आँसू नही होता
उसमें बसा होता है
कोई बेहद अपना
जो रह रहा होता है
मन के आस-पास
और संजो देता है
हमारी आँखों में
एक कोरा कुँवारा सा स्वप्न

फिर न जाने क्यों
एक अनकहा दर्द देकर
उतर जाता है हमारी आँखों से
आँसू बनकर

रूची शाही