हिन्दू पंचांग के अनुसार पौष मास दसवाँ महीना है। उत्तर भारत के हिन्दू पंचांग के अनुसार इस वर्ष 9 दिसम्बर 2022 से पौष का आरम्भ हो गया है, जबकि गुजरात एवं महाराष्ट्र के अनुसार अभी मार्गशीर्ष मास है। पौष मास की पूर्णिमा को अधिकांशतः चंद्र पुष्य नक्षत्र में होते हैं। तैत्तिरीय संहिता में पौष का नाम सहस्य बताया गया है। यह मास दक्षिणायनांत है। पौष मास में अधिकांशतः सूर्य धनु राशि में होते हैं। बहुत से लोग पौष मास को खर मास मानते हैं और इसमें कोई शुभ कार्य नहीं करते, विशेषतः जब सूर्य धनु राशि में प्रवेश कर जाएँ। पंचांग के अनुसार इस बार खर मास 16 दिसंबर से प्रारंभ हो रहा है।
महाभारत के अनुशासन पर्व के अनुशासन
पौषमासं तु कौन्तेय भक्तेनैकेन यः क्षिपेत्।
सुभगो दर्शनीयश्च यशोभागी च जायते।।
जो पौष मास को एक वक्त भोजन करके बिताता है वह सौभाग्यशाली, दर्शनीय और यश का भागी होता है ।
शिवपुराण के अनुसार पौषमास में पूरे महिनेभर जितेन्द्रिय और निराहार रहकर द्विज प्रात:काल से मध्यांन्ह कालतक वेदमाता गायत्री का जप करें। तत्पश्चात रात को सोने के समय तक पंचाक्षर आदि मन्त्रों का जप करें। ऐसा करनेवाला ब्राह्मण ज्ञान पाकर शरीर छूटने के बाद मोक्ष प्राप्त कर लेता हैं। शिवपुराण के अनुसार पौष मास में नमक के दान से षडरस भोजन की प्राप्ति होती है। पौष मास में शतभिषा नक्षत्र के आने पर गणेश जी की पूजा करनी चाहिए।
महाभारत अनुशासन पर्व में ब्रह्मा जी कहते हैं-
पौषमासस्य शुक्ले वै यदा युज्येत रोहिणी।
तेन नक्षत्रयोगेन आकाशशयनो भवेत्॥
एकवस्त्रः शुचिः स्नातः श्रद्दधानः समाहितः।
सोमस्य रश्मयः पीत्वा महायज्ञफलं लभेत्॥
पौषमास के शुक्ल पक्ष में जिस दिन रोहिणी नक्षत्र का योग हो, उस दिन की रात में मनुष्य स्नान आदि से शुद्ध हो एक वस्त्र धारण करके श्रद्धा और एकाग्रता के साथ खुले मैदान में आकाश के नीचे शयन करे और चन्द्रमा की किरणों का ही पान करता रहे। ऐसा करने से उसको महान यज्ञ का फल मिलता है।
ब्रह्मवैवर्त पुराण के प्रकृतिखण्ड के अनुसार चैत्र, पौष तथा भाद्रपद मास के मंगलवार को भगवान विष्णु ने भक्ति पूर्वक तीनों लोकों में लक्ष्मी पूजा का महोत्सव चालू किया। वर्ष के अन्त में पौष की संक्रान्ति के दिन मनु ने अपने प्रांगण में इनकी प्रतिमा का आवाहन करके इनकी पूजा की। तत्पश्चात तीनों लोकों में वह पूजा प्रचलित हो गयी।
शिवपुराण के अनुसार धनु की संक्रांति से युक्त पौषमास में उषाकाल में शिव आदि समस्त देवताओं का पूजन क्रमश: समस्त सिद्धियों की प्राप्ति करानेवाला होता हैं। इस पूजन में अगहनी के चावल से तैयार किये गये हविष्य का नैवेद्य उत्तम बताया जाता हैं। पौषमास में नाना प्रकार के अन्न का नैवेद्य विशेष महत्त्व रखता हैं।
सोमवार 12 दिसंबर से रविवार 18 दिसंबर तक के सप्ताह के प्रमुख व्रत, त्योहार एवं दिवस
बुधवार 14 दिसंबर अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा दिवस
शुक्रवार 16 दिसंबर रुक्मिणी अष्टमी/खर मास आरंभ। पौष मास के कृष्ण मास के अष्टमी तिथि को रुक्मिणी अष्टमी का पर्व मनाया जाता है। इस दिन कृष्ण, रुक्मिणी और प्रद्युम्न का पूजन करना चाहिए, साथ ही भोग लगाएं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जो जातक इस दिन व्रत रखता है और सौभाग्यवती महिलाओं को भोजन कराकर वस्त्र दान करता है, उस पर रुक्मिणीजी प्रसन्न होती हैं। साथ ही घर-परिवार में सुख-शांति बनी रहती है।
शुक्रवार 16 दिसंबर धनु संक्रांति
रविवार 18 दिसंबर अंतर्राष्ट्रीय प्रवासी दिवस