डॉ निशा अग्रवाल
जयपुर, राजस्थान
कितने दर्द तू सहती है
फिर भी उफ्फ तक ना करती है
मां तुझे सलाम।
मां तुझे सलाम।
दिल करता है चंद सवाल मैं, तुझसे करलूँ भारत माता।
लिख डालूँ एक किताब सुनकर, जबाब तेरे मैं भारत माता।।
कहाँ गयी खुशबू वो वतन की, जिसमें मिट्टी की महक थी।
कहाँ गयी लहराती फिजायें, जिनमें चिड़ियों की चहक थी।।
कहाँ गया कल-कल झरनों का, बलखाती नदियों का पानी।
कहाँ गया आशीष हमारा, पितृ हिमालय के चरणों का।।
देख रही हूँ तेज़ धमाके, खंज़र और आतंकी मंज़र को।
उठो जवानों वापस लाओ, भारत माता की अमानत को।।
भारत माता की साड़ी का, पल्लू होती है ये प्रकृति।
आओ मिलकर इसे बचालो, अब हुई है भारी अति की।।
देख रही हूँ पिटती रोती, कलियों और अंधेरी गलियों को।
सरेआम घूमें हत्यारे, लूट के नाज़ुक सी कलियों को।।
देख रही हूँ सिसकता बचपन , मयखानों में डूबे यौवन को।
धक्के खाते बूढ़े तन को, इस बेजान बुढापे मन को।।
बेरोजगारों के घिसते जूते, घोटालों की इस दुनियां को।
शान और शौकत की ज़मीर को, औरत के उजड़ते सुहाग को।।
शब्द नहीं जो लिख पाती मैं, कामिनी के केशों पर कुछ भी।
जुवा नही जो कह पाती मैं, दामिनी के भेषों पर कुछ भी।।
मुझको तो बस दिखता चेहरा, एक ही मेरी भारत मां का।
जो हरदम लाल को पुकारे और गाये हरदम यही गाथा।।
दर्द छुपालूं आँचल में मेरे, तुझको ना मैं रोने दूंगी।
आये कोई विदेशी ताक़त, हर पल तेरे साथ रहूंगी।।
मैं महसूस करूँ केवल ही, उन सैनिकों की साँसों को।
भारत मां के उर में चुभते, उन कँटीले ही फांसों को।।
आओ वीर जवानो आओ, श्रंगार करो भारत माता का।
खुशियों से भर दो ये आँचल, देश धर्म, और ईमान का।।