डॉ निशा अग्रवाल
जयपुर, राजस्थान
अभ्युदय के महा मंच व्यक्तित्व विराट लाते है।
साहित्यिक जीवन दर्शन से अदभुत सी गाथा पाते है।।
अद्वितीय व्यक्तित्व के परिचय से हमारा ज्ञान बढ़ाते है।
साहित्य धारा की गंगा में हम सब भी डुबकी लगाते है।।
मै भी इस गंगा की धार से मोती चुन चुन लाती हूं।
आज महापंडित राहुल के जीवन की गाथा गाती हूं।।
आजमगढ़ यू पी में जन्मे राहुल बहुभाषी चिंतक।
मूलमंत्र घुमक्कड़ था इनका, नाम पड़ा युगपरिवर्तक।।
धर्म विचारक किसान पिता, माता कुलवंती इनकी थी।
इकलौती बेटी थी ये जो पिता के घर ही रहती थी।।
बाल्यकाल में मां को खोया, नाना के घर पोषण पाया
बचपन में नाना नानी ने, वैवाहिक बंधन में बांधा।।
आई उम्र किशोरावस्था,बन साधु एक मठ में बैठे।
यायावरी स्वभाव था इनका, भारत भ्रमण ये कर बैठे।।
रूस के लेनिनग्राड में राहुल, संस्कृत के अध्यापक बन गए।
पाली प्राकृत भाषा सीखी, बौद्ध धर्म की ओर ये झुक गए।।
हिंदी और हिमालय से इनका तो गहरा नाता था।
हिंदुस्तानी लेखक ये इनका तो संघर्ष कहरा था।।
निकल पड़े यात्रा में एक दिन, भारतवर्ष को नाप लिया।
तिब्बत चीन यात्रा के दौरान, हजारों ग्रंथों का उद्धार किया।।
ग्रंथ लिखे यात्रा के पन्ने, किन्नर देश की ओर, लहासा।
यूरोप, लद्दाख, ईरान की यात्रा और विश्व की रूप रेखा।।
कार्ल मार्क्स लेनिन स्तालिन, वीर चंद्र सिंह गुढ़वाली।
पृथ्वीसिंह, जयवर्धन, स्वामी, मेरे असहयोग के साथी।।
कनैला कथा, सत्मी के बच्चे, वोल्गा से गंगा जीने के लिए।
भागो नही, दुनिया को बदलो, मधुर स्वप्न दिवोदास के लिए।।
100 पैसे पर डाक टिकिट, साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला।
पदम भूषण सम्मान अनूठा भारत में सम्मान मिला।।
कमर बांध लो भावी घुमक्कड़, स्वागत के लिए संसार खड़ा।
बिहार किसान आंदोलन में कर्मयोगी योद्धा ये बना।।
ऐसे महारथी चिंतक ने अंतिम सांसें दार्जिलिंग में ली।
महक रही है आज भी सांसें, इनके साहित्यिक दर्शन की।।
नमन करूं मैं बार-बार, ऐसी अदभुत सी प्रतिभा को।
पढ़ते रहिए बार बार, ऐसे ग्रंथों की गरिमा को।।