अवनि से अंबर तक बरसे  रंग-अबीर- श्वेता सिन्हा

हृदय भरा उल्लास
हथेलियों में मल रंग लिये,
सुगंधहीन पलाश बिखरी
तन में मादक गंध लिये।

जला होलिका ईष्या-द्वेष की
राख मले मतवारे सारे
रंग-गुलाल भरी पिचकारी
निकले अपने संग लिये।

फगुआ छेड़े पवन बसंती
नाचे झूमे सखियाँ सारी,
लाल,गुलाबी,हरे,बैंगनी
मुख इंद्रधनुष सतरंग लिये।

रंगों से धुले कलुषित मन
न किसी से कोई वैर रहे,
थिरके एक राग में तन-मन
झूमे प्रेम उमंग लिये।

गुझिया,मालपुआ रसीली
पकवानों की दावत है,
बाल वृंद भी इत-उत डोले
किलकारी हुड़दंग लिये।

अवनि से अंबर तक बरसे
रंग-अबीर,गुलाल पिचकारी
मन मकरंद बौराये रह-रह
तन सजे रंग गुलकंद लिये

-श्वेता सिन्हा