आया होली का पर्व लेके उमंग,
चहुंओर बिखरे खुशियों के रंग।
मन सबका झूमें बनके मलंग,
बाज रहे ढोल-ताशे,मृदंग।
आओ मिल सब रंगें एक ही रंग,
जीवन में घुल जाए प्रेम का रंग।
कान्हा होली खेले जैसे राधा के संग,
प्रकृति भी झूमें चढ़ा राधे का रंग।
गोकुल की गलियों में मची है धूम,
आसमां भी धरती को रहा है चूम।
भीनी-भीनी बहे फागुनी बयार,
मस्त-मस्त मौसम मन रहा है झूम।
होली का हुड़दंग बाजे मृदंग,
राधिका नाचे कान्हा के संग।
अंग-अंग रंग है भीगे प्रत्यंग,
फागुन में फाग की ऊंची ऊचंग।
-अभिलाषा चौहान