माँ हर बार तुम
वही रंग ले आती हो
नीला और पीला
हरा और गुलाबी
इस बार कोई
रंग नया लाओ तो
मुझको रंगना है तुमको भी
उस रंग में…
हर बार होली के दिन
तुम रसोई में
पकवानों की खुश्बू के बीच
छिप जाती हो
इस बार सारे पकवान
बनने के बाद ही
मैं रंग घोलूंगी
रंगना होगा तुम्हें भी
उस नये रंग में…
तब तुम्हारा कोई बहाना
काम नहीं करेगा
गुलाल का टीका
मेरे गालों पर लगाकर
सटाना तुम्हारा वो गाल
मुझे थोड़ी देर के लिये
रोक तो देगा
पर तुम्हें रंग तो खेलना होगा
बोलो खेलोगी न माँ…
मेरे साथ
उस नये रंग में…
-सीमा सिंघल