रंग गुलाल का
गालो पर मेरे
निशानियां तेरी
उँगलियों की दे गया…
शरारत
नज़रो की अपनी
नज़रो को
मेरी दे गया…
झुक रही है
पलके बारबार
धड़कनों को ये कैसा
पयाम दे गया…
आईने में निहारा
जो खुद को
आँखों मे
अक्स तेरा दे गया…
घुल गई हया
रंगों में अज़ब
निशानी इश्क़ की
जब माथे पर दे गया…
रंग ओर गाढ़ा हुआ
गुलाल का
यह फ़ाग जाने कैसी
मदहोशी दे गया…
बेक़रार शिरीन
हम यूँही तो नही
बेक़रारी में भी
एक इत्मिनान दे गया…
-शिरीन भावसार
इंदौर (मप्र)