किरण जादौन ‘प्राची’
करौली, राजस्थान
“देकर जख्म अनगिनत अपने अहम में
कैसी है आपकी तबियत वह अब पूछते हैं
नहीं रहता याद ऊपर किस सीढ़ी से आए
अहम में सबसे पहले उसी को तोड़ लाए
मिलेंगे अनेक, थाली में व्यंजन जो परोसो
लेते आनंद फिर टूटे चाहे सबको ही भरोसो
बनें चाहे कितने ही सफेदपोश सामने जग के
सब जानते कालिमा छुपी है अंदर सफेदी के!
भेड़िया जग सारा, ओढ़कर गैया की खाल को
क्यूं हो संकोच उसे जब परोस रहे हैं खुद को!
जमाना ही रह गया है अब बस दिखावे का
कदरदान अब कौन रह गया है सदाकत का!
प्राची की किरण की अब कौन बाट जोहे
जब सबके अपने ही अहम के सूरज सोहे!