थोड़ी धूप छुपा कर रखना
सीलन का मौसम आना है
सागर से विकराल भयानक
कुछ काले दानव निकलेंगे
जहाँ प्रेम की लिखी इबारत
ठीक वहीं जा कर बरसेंगे
जम जायेगी काई मन पर
अपने पाँव जमा कर चलना
फिसलन का मौसम आना है
सन्नाटे में साँय साँय कर
हवा डराने को निकलेगी
तेरा कुछ अनकहा चुरा कर
पत्ते पत्ते पर लिख देगी
शायद तुझ पर गिरे बिजलियाँ
थोड़ा धीर बचा कर रखना
विचलन का मौसम आना है
अंगारों सा क्रोध किसी दिन
तुझ पर हन्टर सा बरसेगा
एक विषैला धुआँ निकल कर
सर से पैरों तक ढक लेगा
अधरों पर हुंकार बिछा कर
उस पर तर्क सजा कर रखना
गर्जन का मौसम आना है
-संध्या सिंह