चेन्नई (हि.स.)। कैंसर के उपचार के क्षेत्र में प्राकृतिक विधि से कम खर्च वाली तकनीक और औषधि विकसित करने के लिए वैज्ञानिक खोज लगातार चल रही है। इस दृष्टि से आईआईटी (मद्रास) के शोधकर्ताओं ने कैंसर के इलाज के लिए भारतीय मसालों के उपयोग का पेटेंट कराया है। यह दवाएं 2028 तक बाजार में उपलब्ध होने की संभावना है।
वर्ष 1930 से अब तक कैंसर के उपचार में कीमोथेरेपी का प्रयोग जारी है। उपचार के विकल्पों में रेडियोथेरेपी और सर्जरी भी है जो उपचार की कीमत के लिहाज से काफी खर्चीली होती है। इसकी लागत कम करने को लेकर वैज्ञानिक प्राकृतिक विधि से कम खर्च वाली तकनीक और औषधियां विकसित करने में जुटे हुए हैं।
आईआईटी (मद्रास) के शोधकर्ताओं ने कैंसर के इलाज के लिए भारतीय मसालों के उपयोग का पेटेंट कराया है। भारतीय मसाले नैनो मेडिसिन के रूप में फेफड़े, स्तन, बृहदान्त्र, ग्रीवा, मुख और थायराइड से संबंधित कैंसर रोकने में कारगर सिद्ध हुए हैं। आईआईटी (मद्रास) ने कहा कि मसाले के प्रयोग से थायरॉयड कोशिकाएं सुरक्षित पाई गई है।
वर्तमान में संपूर्ण शरीर सुरक्षा और ऐसी प्राकृतिक औषधियां की लागत को ध्यान में रखते हुए कैंसर प्रभावित कोशिकाओं की चिकित्सा बड़ी चुनौती है। लेकिन विभिन्न मसाले के प्रयोग से देखा गया कि अन्य कोशिकाएं सुरक्षित रहती है। वैज्ञानिकों का प्रयास है कि प्रभावकारी तत्वों को नैनो टेक्नोलॉजी के माध्यम से संघनित कर चिकित्सा कार्य में प्रयोग किया जाए।
आईआईटी (मद्रास) में केमिकल इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर आर नागराजन ने बताया कि इस समस्या से निपटने के लिए आईआईटी-एम ने नैनो-इमल्शन के रूप में दवाओं को तैयार करेगी ताकि मसाले की जैव विविधता संबंधी चुनौती को सुलझाया जा सके।