जफ़ा नहीं है, वफ़ा नहीं है
मगर कुछ भी बचा नहीं है।
है बेहद ये उदास आँखें
तकती सूनी वीरान राहें
कुछ सिसकियाँ है लबों पे
जो भर रहीं हैं सर्द आँहें
ये ग़म भी सह लेंगें अब
क्या कुछ हमने सहा नहीं है।
जफ़ा नहीं है वफ़ा नहीं है
मगर कुछ भी बचा नहीं है
उन्हें पता था हाल मेरा
हर दर्द मेरा,मलाल मेरा
हो गए यतीम सारे आँसू
जो उसने छीना रुमाल मेरा
आवारा न हो जाएं अश्क
कोई अब इनका रहा नही है
जफ़ा नहीं है वफ़ा नहीं है
मगर कुछ भी बचा नहीं है।
उसने पुकारा था नाम ऐसे
कोई हक रहा न हमारा जैसे
हो जाएं अजनबी मगर हम
भुला सकेंगे कभी उनको कैसे
बहुत शिकायत रही है उनसे
मग़र अब कोई गिला नही है।
जफ़ा नहीं है वफ़ा नहीं है
मगर कुछ भी बचा नहीं है।
-रुचि किशोर