रास बिहारी
एग्जिट पोल एक बार फिर धराशायी हो गए पर ईवीएम जीत गई। लोकसभा चुनाव में एनडीए के 300 सीटें पार न करने पर इंडी गठबंधन बहुत खुश है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने एनडीए की सीटें बहुत कम होने पर खुश होकर कहा कि लोकतंत्र जीत गया। विपक्ष गठबंधन भी अपने दावे के मुताबिक 295 तक का आंकड़ा नहीं छू पाया। अगर देखा जाए तो विपक्षी गठबंधन भाजपा को अकेले मिली 242 सीटों तक मिलकर नहीं पहुंच पाया। दक्षिण में भी एनडीए सबसे बड़े गठबंधन के रूप में उभरा है।
पिछले दो आम चुनाव में पूर्ण बहुत पाने वाली भारतीय जनता पार्टी को उत्तर प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान, महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल में करारा झटका लगा है। 370 पार का नारा देने वाली 242 तक ही रह गई। उत्तर प्रदेश में 2014 में 73 और 2019 में 64 सीटें जीतन वाला एनडीए इस बार केवल 36 पर सिमटता दिख रहा है। सपा और कांग्रेस 80 में से 18 सीटें जीत चुके हैं जबकि 26 सीटों पर निर्णायक बढ़त बनाए हुए हैं। मध्य प्रदेश, दिल्ली, छत्तीसगढ़, उत्तराखंड, हिमाचल, असम, जम्मू-कश्मीर में भाजपा ने अपनी जीत को बरकरार रखा। मध्य प्रदेश में भाजपा ने सभी 29 सीटों पर जीत हासिल की है। दिल्ली की सात, उत्तराखंड की पांच और हिमाचल की चार सीटों पर भी भाजपा ने लगातार तीसरी बार जीत हासिल की है। ओडिशा में भाजपा ने पहली बार 21 में से 19 सीटें जीती हैं। आंध्र प्रदेश और ओडिशा के विधानसभा चुनावों में भी एनडीए ने परचम फहराया है। ओडिशा विधानसभा की 147 सीटों में भाजपा 80 सीट जीत रही है। आंध्र प्रदेश में 16 लोकसभा सीटें जीतने के साथ तेलुगु देशम पार्टी विधानसभा में 130 से ज्यादा सीटें जीत रही है। अब इन दो राज्यों में एनडीए की सरकार होगी। बिहार ने भाजपा ने जदयू के साथ मिलकर विपक्ष के सभी दावों को धराशायी कर दिया है।
विपक्ष इसे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की व्यक्तिगत हार बता रहा है। दस वर्ष केंद्र में मजबूती से सरकार चलाने वाले मोदी के नेतृत्व में एनडीए तीसरी बार सरकार बनाने की तैयारी में हैं। देखा जाए तो दस वर्ष की सरकार के बाद तीसरी बार सरकार बनाने का मौका पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के बाद अब मोदी को मिलेगा। भारतीय राजनीति के इतिहास में मोदी की यह बड़ी जीत है, क्योंकि तीन दर्जन से ज्यादा विपक्षी दल मिलकर चुनाव लड़ने के बावजूद एनडीए को सत्ता से बाहर नहीं कर पाए। हां इतना जरूर है कि पिछले चुनाव में 55 सीटें जीतने वाली कांग्रेस इस बार 100 तक पहुंच गई है।
भाजपा ने इस बार 112 सीटों पर दूसरों दलों से आए नेताओं को उम्मीदवार बनाया था। इस बार जनता ने दलबदलू नेताओं को नकार दिया है। भाजपा में आए कई दलबदलू नेताओं को जनता ने चुनाव में हरा दिया है। चुनाव से पहले एक दर्जन से ज्यादा कांग्रेस नेता भाजपा में शामिल हुए थे। इनमें से कुछ नेता ही चुनाव जीत पाए हैं। हरियाणा में भाजपा को पांच सीटों का नुकसान हुआ है। हरियाणा में सरकार में नेतृत्व परिवर्तन के कारण उपजी नाराजगी का भाजपा को भारी नुकसान हुआ है। 2019 में सभी दस सीटें जीतने वाली भाजपा हरियाणा में इस बार पांच सीट ही जीत पाई। इसी तरह राजस्थान में पिछले चुनाव में 25 सीटें जीतने वाली भाजपा इस बार 14 सीट ही जीत पाई है। सबसे ज्यादा नुकसान भाजपा को उत्तर प्रदेश में हुआ है। इसकी एक बड़ी वजह भाजपा कार्यकर्ताओं की नाराजगी मानी जा रही है। एक कहा जा रहा है कि योगी सरकार के प्रशासन-पुलिस की भूमिका के कारण जनता में नाराजगी बढ़ रही थी। भाजपा नेताओं की जनता से दूरी बढ़ने के कारण इस बार लोकसभा सीटें बहुत कम हो गईं। उत्तर प्रदेश में जनता ने मोदी सरकार के कई मंत्रियों को हरा दिया है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और नेशनल यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट्स (इंडिया) के अध्यक्ष हैं)
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