इश्क़ है ऐसा कि
सब तलत अपने शब के नाम कर दूँ,
नाम मेरा वो लबों पर रखें,
कुछ तो ऐसा काम कर दूँ,
वो देखें हमें भरी महफ़िल में,
और मैं उनको अपने नाम कर लूँ,
चार पल का फेरा है जहाँ में,
ये चार पल उनके नाम कर दूँ
इश्क़ है ऐसा कि
सब तलत अपने शब के नाम कर दूँ,
बैर भी होगा उनको मुझसे तो भी,
मैं सारा अनुराग उनके नाम कर दूँ,
हिना से भरा जो अंजुली अपनी,
मैं हर रक्त कण उनके नाम कर दूँ,
नाम क्या लूँ उनका भरे ज़माने में,
इश्क़ है तो क्या उनको बदनाम कर दूँ
इश्क़ है ऐसा कि
सब तलत अपने शब के नाम कर दूँ,
पढ़ कर मेरे गुमनाम शब्दों को,
होगा गुमान उनको ये गुमान कर लूँ,
कभी बैठेंगी वो साथ मेरे किसी शाम,
उस महफ़िल का इंतेजाम कर लूँ,
साथ चल सकेंगी उम्र भर मेरे,
कुछ आला दर्जा काम तो कर दूँ
इश्क़ है ऐसा कि
सब तलत अपने शब के नाम कर दूँ
-मनोज कुमार