औरतें- रसोई में, खेत में- डॉ मीरा श्रीवास्तव

औरतें रसोई में बिता देती हैं
जिंदगी, रोटियां बेलते, सेंकते
घर का कोई पुरुष झांकता तक नहीं
वर्जित क्षेत्र है रसोई पुरुषों के लिए
कुछ वर्जनाएं बड़ी ईमानदारी से
निबाहते हैं ये पुरुष,
सब्जियां छीलते-काटते औरतें
काट लेती हैं उंगली हंसुए
की तेज धार से,
पुरुष लापरवाही जताते
उंगली से टपकते खून को
अनदेखा कर देते हैं,
औरतों के अंग से बहता खून
बहुत मायने नहीं रखता
पुरुषों के लिए,
औरतें पानी की तेज धार के
नीचे खून को धो,
कटी उंगली को मुंह में भींच
उंगली के झक्क् सफेद होने तक
चूसती जाती हैं जबतक उन्हें
यकीन न आ जाए कि कतरा भर
खून भी जाया नहीं हुआ
औरतें सावन में घुटनों तक
खेत के कीचड़-पानी में धंस
रोपती हैं धान के बिजड़े
कमर दोहराये क्यारियों में
रोपनी करती औरतें जैसे
कसीदे काढ़ती होती हैं पानी पर ,
एक भी धागा न ढीला, न कसा
दर्द से पिराती अपनी कमर
सीधा नहीं करतीं ये औरतें
जबतक टोकरी के बिजड़े
खत्म नहीं हो जाते
उस वक्त भी खेत के आसपास
नहीं होता एक भी पुरुष,

बदरंग साड़ी को घुटनों तक उठाये,
फटे पल्लू को छाती पर कसकर लपेटे,
अन्नपूर्णा का रुप धरे
ये औरतें इंद्रदेव का आह्वान जब कर रही होती हैं,
तब भी वहां पुरुष नहीं होते
औरतें चूल्हा-चौका समेटती
बुझती लकड़ी का धुआं अपनी छाती बस में भरे,
खटिया पर निढाल गिरने को होती हैं,
वही पुरुष जो दिन भर न उनके आसपास
न उनके साथ कहीं नहीं होते,
खटिया पर करवटें बदलते
उनकी राह तकते होते हैं

-डॉ मीरा श्रीवास्तव

परिचय-
डॉ मीरा श्रीवास्तव (एम ए हिंदी, बीएड, पीएचडी)
प्रो. सुरेश श्रीवास्तव, राजेंद्र नगर,आरा, भोजपुर।
पूर्व प्राचार्या डीएवी पब्लिक स्कूल, आरा, भोजपुर
विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में कवितायें, लेख, समीक्षाएं प्रकाशित
संप्रति-
स्वतंत्र लेखन में व्यस्त। ऊनी शॉल प्रथम काव्य संग्रह अभिधा प्रकाशन से प्रकाशित, शोध प्रबंध साठोत्तरी कहानियों में नारी लेखिकाओं की भूमिका का पुस्तक रुप में ज्योति प्रकाशन से प्रकाशन।